ध्यान से जुटाइए मन की शक्ति
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ध्यान से जुटाइए मन की शक्ति

भाव को आने दीजिए, जाने दीजिए। बस उस पर टिकिए मत

ध्यान से जुटाइए मन की शक्ति

कहते हैं न कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। फिर इस दौर में जब पूरी दुनिया ऐसे हालात की गिरफ़्त में है, जब सभी को सिर्फ़ अपने मन की शक्ति का ही सहारा है तो बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हम उस दिशा में हर वह प्रयास करें, जिससे हमारे मन का बल बलवान हो। अब इसे चाहे ध्यान या मेडिटेशन करना कहें या एकाग्र होना, मकसद तो यही है कि हमारे मन की शक्ति से हमारे तन तक ऊर्जा पहुंचे। आज यहां हम कुछ ऐसे ही आसान तरीकों के बारे में बता रहे हैं, जो आपको इस विषय में कुछ लाभ पहुंचा सकते हैं।

1. अपने संगीत को सुनें भी, गुनें भी

संगीत का प्रभाव तो इतना जादुई होता है कि क्या मनुष्य, क्या पशु-पक्षी, सभी पर अपना असर छोड़ता है। बस ज़रूरत होती है, सही संगीत के चुनाव की। आपका भी कोई न कोई ऐसा मनपसंद गीत या संगीत ज़रूर होगा, जिसे आप अपना साझा तब बनाते होंगे, जब केवल अपना साथ चाहते हैं। तो फिर किसी ऐसे ही गीत-संगीत की याद ताज़ा कर लीजिए और एक बार फिर से पूरी शिद्दत के साथ खो जाइए उसकी स्वर लहरियों में। वैसे यहां हमारा एक सुझाव तो यह भी है कि अगर आप संगीत के माध्यम से ध्यान लगाने की कोशिश में हैं तो किसी इंस्ट्रूमेंटल म्यूज़िक को चुनिए। हल्के-हल्के संगीत के साथ अपने-आप को एक जगह शांत, स्थिर छोड़ दीजिए। फिर अपनी कल्पना के बंधन भी ढीले छोड़ दीजिए। विचारों को बांधने की कोशिश कई बार दबाव पैदा करती है, सो इस बार ऐसा मत कीजिए। देखिए, आपके विचारों का प्रवाह आपको कहां तक ले जाता है।

2. नृत्य योग को आज़माइए

नृत्य भले ही एक कला है, लेकिन जब ये कला आत्म से एकात्म का मार्ग बन जाती है तो योग का रूप ले लेती है। आपने कई बार दूसरों के लिए, दूसरों के सामने डांस किया होगा, इस बार किसी कोमल स्वर लहरी के साथ अपने-आप को आज़ाद छोड़ दीजिए। उन स्वर लहरियों के साथ अपने शरीर को ढीला, बिल्कुल ढीला छोड़ दीजिए। उसे अपनी मुद्रा, अपना आकार स्वयं लेने दीजिए, बिना किसी प्रयास के। चाहे बांहें आकाश नाप देना चाहें या कदम ज़मीन से उड़-उड़ जाने को आतुर हों। बस संगीत के साथ अपने शरीर को अपनी भाषा आप गढ़ने दीजिए। मुद्राएं चाहें सधी हों या बेतरतीब। बस जो हो रहा है, होने दीजिए। कुछ मत सोचिए।

3. प्रकृति योग का जादू है अनूठा

दुनिया में सबसे तेज़ गति है मन की। पल में यहां तो पल में जाने कहां, किस क्षण में। जब हम अपनी ज़िंदगी की भागदौड़ में उलझे होते हैं तो पता ही नहीं चलता कि दिन, महीने, साल कब, कहां, कैसे बीत जाते हैं। आज चाहे हालात के चलते ही हो, हमें कुछ वक्त ऐसा मिला है कि हम कुछ पल निकाल कर एक नज़र इस कुदरत पर भी डाल सकें। तो चलिए, कोशिश करते हैं इस दुनिया को कुदरत के संकेत से ही समझने की। अपने किसी भी मन-पसंद स्थान पर शांति से बैठ जाएं। चाहे सामने खुला आकाश हो या फिर कोई पेड़, पौधा या फिर सूनी सी गली ही सही। जो आपकी नज़र में समा जाए, उसे ही पूरे साक्षी भाव से देखें और एकाकार होने की कोशिश करें। अपने से न तो कुछ सोचें और न ही अगर कोई ख़याल आ रहा है तो उससे जबरन पीछा छुड़ाएं। भाव को आने दीजिए, जाने दीजिए। बस उस पर टिकिए मत। उसे बांध कर मत रखिए।

4. एकांत योग में पाइए खुद को

कभी-कभी कुछ भी न करना भी एक बड़े कार्य के आरंभ का आधार बन जाता है। अगर आप चाहें तो अपनी आंखें खुली रखिए या चाहें तो आंखों को बंद करके अपने मन की पड़ताल की कोशिश करके देखिए। कई बार सन्नाटे वह सुनवा देते हैं, जो ज़िंदगी के शोरोगुल में गुम हो जाता है। जब हम अपने मन की आवाज़ें सुनने लायक बन जाते हैं, तभी कुछ सवालों के जवाब भी उन्हीं में से अनजाने ही निकल आते हैं। कोशिश कीजिए कि आप भी ऐसा ही कर सकें। बस जो भी करें, साक्षी भाव से करें और बिना ज़ोर-जबरदस्ती, प्रयास के। हमें विश्वास है कि मौन में से ही कुछ ऐसे स्वर ज़रूर फूटेंगे, जिनमें उम्मीदों की किरणें झिलमिलाएंगी।