ये बातें बना सकती हैं आपके करियर को शानदार!
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ये बातें बना सकती हैं आपके करियर को शानदार!

नौकरी और करियर में फ़र्क समझिए

ये बातें बना सकती हैं आपके करियर को शानदार!

इससे पहले कि मैं आज की बातचीत शुरू करूं, पहले मैं आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाना चाहती हूं। कहानी है तो बहुत ही छोटी सी, मगर उसमें ख़ास क्या है, ये आपको सुनने के बाद ही पता चलेगा। एक जगह कुछ कंस्ट्रक्शन वर्क चल रहा था। वहां तीन मज़दूर काम कर रहे थे। वहीं से गुज़रता एक शख़्स उन्हें ग़ौर से देखने लगा। उसने पहले मज़दूर से पूछा कि तुम क्या कर रहे हो भाई। तो मज़दूर ने जवाब दिया, देखते नहीं हो, मैं अपनी दिहाड़ी कमा रहा हूं, यानी डेली वेज़ेस कमा रहा हूं। उस शख़्स ने दूसरे मज़दूर से भी वही सवाल किया तो दूसरे मज़दूर ने जवाब दिया कि मैं एक दीवार बना रहा हूं। अब उस शख़्स ने तीसरे मज़दूर से भी वही सवाल दोहराया तो जानते हैं उस तीसरे मज़दूर ने क्या जवाब दिया। उसने कहा कि यहां पर किसी के लिए एक बहुत ख़ूबसूरत घर बन रहा है और मैं उस का एक हिस्सा बना रहा हूं अभी।

सच भी यही है, हमारा नज़रिया ही ये तय करता है कि हम सिर्फ़ अपनी सैलरी कमा रहे हैं, काम निपटा रहे हैं या अपने सुनहरे भविष्य की नींव रख रहे हैं। काम तो सभी करते हैं, लेकिन उस काम को एक कला हमारा काम करने का ढंग बनाता है। तो चलिए, आज कुछ बातें इसी बारे में करते हैं।

नौकरी और करियर में फ़र्क समझिए

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अगर आप सोचते हैं कि अगर आपको काम करना ही नहीं आता तो ये नौकरी आपको मिलती कैसे। एक्जेक्टली, बिल्कुल यही बात तो है। आपको जो नौकरी मिली है, वह आपकी एजुकेशन और वर्किंग स्किल्स के बूते पर मिली है, वैसे ही जैसे कि आपके बाकी कलीग्स को मिली है। फिर आपमें ऐसा क्या ख़ास है, जो आपको उन बाकी कलीग्स से बेहतर बनाता है। काम तो सभी कर ही रहे हैं न। आपको बाकियों से बेहतर ही नहीं, बल्कि बेस्ट बना सकता है आपका नज़रिया, अगर आप नौकरी और करियर में फ़र्क करना सीख जाते हैं तो, यानी कि अगर आप अपने रोज़ के काम को एक रुटीन की ही तरह सिर्फ़ पूरा करते हैं, यानी निपटाते हैं तो आपके साथ भी वही होगा, जो अब तक होता आया है, यानी कि एंड ऑफ द मंथ आपके हाथ पर एक सैलरी रख दी जाएगी या फिर जो पर्क्स आपको मिलते आए हैं, सिर्फ़ वही मिलते रहेंगे। ऐसे में पुराने काम को पुराने ढंग से करते हुए आपके साथ कुछ नया कैसे हो सकता है। ये नयापन संभव है सिर्फ़ आपकी नई सोच और काम करने के ढंग में नएपन के आधार पर। ये सोच का नयापन ही आपके काम के नए क्षितिज खोलेगा, जहां से निकलेंगे आपकी तरक्की के रास्ते। ऐसे रास्ते, जिन पर चलकर आप अपने सारे सपने पूरे कर सकते हैं, यानी आसान भाषा में कहें तो फ़र्क ख़त्म होगा, नौकरी और करियर का।

समय की कद्र करना सीखिए

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एक बहुत बड़े विद्वान कह गए हैं कि हड़बड़ी में रहने वाले लोग कुछ ऐसे होते हैं, जो घंटों बर्बाद करने के बाद मिनट बचाने की कोशिश करते हैं। अगर आपको भी ऑफिस में दाख़िल होते ही लगता है कि पहले एक कप चाय या कॉफी मिल, तभी काम का मूड बन सकता है या आप फॉर्म में आ सकते हैं तो हम कहेंगे कि इसमें कोई हर्ज नहीं है, लेकिन अगर आप कॉफी ब्रेक को ही लंच ब्रेक बना लेते हों तो दिक्कत है। वैसे ये दिक्कत हमें नहीं, आपके बॉस या टीम लीडर को हो सकती है और इसका असर साफ़-साफ़ आपके काम पर भी दिख सकता है। कहने का मतलब है कि आपका काम किसी आदत का मोहताज नहीं होना चाहिए। काम आपकी सिर्फ़ रोज़ी-रोटी का ज़रिया ही नहीं होता, बल्कि आपकी पहचान भी उससे जुड़ी होती है और भविष्य भी। ऐसे में कभी बहुत थकने पर फ्रेश होने के लिए ब्रेक ले लेने में कुछ ग़लत नहीं है, लेकिन ये ब्रेक ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसका असर काम पर पड़े या फिर आपमें ऐसी आदत पनपने लगे कि आप काम को आज की बजाय कल पर टालने लगें। ऐसा अक्सर होता है कि जो काम डेडलाइन के साथ मिलते हैं या मुश्किल होते हैं तो उन पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन जो काम थोड़ा आसान लगते हैं, उन्हें हम आराम से कल पर टालने लगते हैं, जबकि कल जैसी तो कोई चीज़ होती ही नहीं, जो होता है, आज होता है। याद रखिए, जो लोग वक़्त की कदर नहीं करते, वक़्त उनकी कदर नहीं करता। 

ऑफिस के संसाधनों की इज़्ज़त कीजिए

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ये बड़ी अजीब बात है कि हमें इस बारे में भी यहां बात करनी पड़ रही है, मगर समस्या तो यहां भी है। क्या कभी आपने इस बात पर ग़ौर किया है कि आपके कुछ कलीग्स या फिर आप ही ऑफिस के रिसोर्सेस का इस्तेमाल इतनी फ़राख़दिली से करते हैं कि जिन्हें वेस्ट करने की कैटेगिरी में रखा जा सकता है- जैसेकि अगर वे कोई नोटपैड या दूसरी स्टेशनरी इस्तेमाल कर रहे हैं तो कुछ ख़ुद इस्तेमाल करते हैं, कुछ अपने घर ले जाते हैं। कोई प्रिंटआउट लेना हो तो ज़रूरत के हिसाब से वन साइडेड पेज या ब्लाइंग शीट इस्तेमाल करने के प्रति सजग नहीं रहते या ग़लत कमांड देने पर जब प्रिंट आउट कई बार निकल जाते हैं तो उसे वक़्त रहते कैंसिल करने की ज़हमत नहीं उठाना चाहते। काम पूरा हो जाने के बाद ऑफिस का कंप्यूटर प्रॉपर तरीके से शटडाउन नहीं करते। मेन स्विच ऑन छोड़ देते हैं। फैन, एसी या लाइट्स के मामले में भी यही आदत देखने को मिलती है। ऑफिस की चाय या कॉफी अगर नहीं पसंद है तो दो घूंट लेकर बाकी छोड़ देते हैं, बजाय इसके कि पहले ही चैक कर लें और उसे बर्बाद होने से बचाएं। सबसे बुरी आदत तो देखने को मिलती है टॉयलैट में, जहां अक्सर साफ़-सफ़ाई को लेकर कोई न कोई निर्देश लिखा हुआ मिल ही जाता है कि इस्तेमाल के बाद फ्लैश ठीक से करना न भूलें, इस्तेमाल किए हुए टिश्यू वग़ैरह डस्टबिन में ही डालें। यूज़ के बाद एग्ज़ॉस्ट ऑन करना न भूलें। सीट को गीला न छोड़े वगैरह-वगैरह। क्या वाकई ये ऐसे प्वॉइंट्स नहीं है, जिनके आधार पर यह बात कही जा सकती है कि आप सिर्फ़ लिटरेट हैं, एजुकेटेड नहीं, यानी कि आपने साक्षरता तो प्राप्त कर ली है, लेकिन आप शिक्षित होने से अभी दूर हैं। 

इमोशंस मैनेजमेंट का भी ध्यान रखें

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ये सच है कि भावनाएं ही इंसान को इंसान बनाती हैं, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि सही जगह के अनुसार ही अपनी भावनाएं ज़ाहिर करनी चाहिए या छिपानी चाहिए। हो सकता है कि कभी आप बहुत ख़राब मूड में हैं या बहुत उदास है तो ध्यान रखिएगा, ऑफिस इन भावनाओं के इज़हार की सबसे ग़लत जगह है। कभी भावुकता में आकर आप अगर अपनी फीलिंग्स किसी से शेयर कर भी लेती हैं तो बहुत सजग-सचेत होकर उठाने लायक कदम है। उदास होने पर न तो ऑफिस में पूरे दिन मातमी सूरत बना कर बैठने की ज़रूरत है और न ही मूड ऑफ होने पर बात-बेबात दूसरों से उलझने की। याद रखिए कि समस्याएं या भावनाएं सभी के जीवन में होती हैं, लेकिन उनसे निपटा कैसे जाए, यही होता है इमोशंस मैनेजमेंट, यानी भावनाओं का संतुलन। हर बार परफेक्ट होना आसान नहीं होता, मगर कोशिशें तो की ही जा सकती हैं और आपसे ये किसने कहा कि आप आसानियों के लिए बने हैं, बल्कि मुश्किलों को अपने हौसले से हराने का हुनर ही तो है असल आर्ट ऑफ लीविंग। 

ऑफिस पॉलिटिक्स या गॉसिप सिटिंग्स से बचिए

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ये हर ऑफिस की कहानी है, कहीं छोड़ी तो कहीं बड़ी, लेकिन ये तस्वीर किसी ऑफिस के लिए नई नहीं है। सच कहें तो ये इंसानी फ़ितरत है या कह लीजिए कि आज के कॉम्पिटिशन के युग में ये कोई अनोखी बात नहीं लगती, जब लोग अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए दूसरों की लकीर को छोटा दिखाने से ही नहीं, बल्कि मिटाने तक से बाज़ नहीं आते हैं। अपने सीनियर्स को ख़ुश करने के लिए उसकी जी-हुज़ूरी करना, उसकी सभी बातों पर हां में हां मिलाना या अपने कलीग्स के बीच मौजूद रहने वाले स्पाई कैमरा बनने तक पर उन्हें ऐतराज़ नहीं होता, जबकि ये कोई स्किल नहीं, एक प्रॉब्लम है, बल्कि ऐब है और आप कभी-कभी जाने-अनजाने इस ऐब का हिस्सा बन जाते हैं। सभी से वर्किंग रिलेशन ज़रूर बना कर रखिए, लेकिन ये भी याद रखिए कि आप सभी को ख़ुश नहीं रख सकते, इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने को काम में इतना बिज़ी रखिए की कि किसी ऐसी फ़ालतू बात के लिए आपके पास वक़्त ही न हो। असल में हर कंपनी को ज़रूरत काम करने वालों की ही होती है।  

सोशल होना भी ज़रूरी है

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आप कहेंगे कि अभी तो हमने कहा कि काम में इतना बिज़ी रहो कि किसी फ़ालतू बात के लिए टाइम ही न मिले तो हम कहेंगे कि फिर आपने हमारी बात को आधा-अधूरा और ग़लत समझा है। हमारी सलाह आपको किसी ऑफिस पॉलिटिक्स या गॉसिप से बचने की है, न कि एंटी सोशल होने की। ऑफिस में कभी आपके सिंगल टास्क होते हैं तो कभी टीम वर्क। काम चाहे इनमें से कोई भी हो, लेकिन आपको सभी के साथ वर्किंग रिलेशन तो रखने ही पड़ते हैं। अगर ऑफिस में कोई स्पेशल ओकेशन है, कोई गैट टू गैदर है या कोई ऑफिस पार्टी है और आप तब भी अपने काम में डूबे, दूसरों से कटे-कटे बैठे हैं तो बेशक ये भी एक ग़लत एटिट्यूड है। याद रखिए, आज आप किसी के अच्छे-बुरे मौके पर शामिल होंगे, तभी कोई आपके अच्छे-बुरे का साझेदार बनेगा। दुनिया में सभी से कटकर रहने वालों को अपनी अलग ही दुनिया बसा लेनी चाहिए, लेकिन इस दुनिया में नहीं, किसी दूसरे प्लानेट पर।

बातचीत की गरिमा बनाए रखिए 

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ऑफिस में किसी से भी बात करते समय सामने वाले की उम्र, ओहदे और स्टेटस का ख़याल ज़रूर रखें। अगर आप अपने सीनियर से बात कर रहे हैं तो वह कितना भी फ्रेंडली या मिलनसार नेचर का क्यों न हो, उसे एडवांटेज की तरह लेने की ज़रूरत नहीं है। याद रखिए कि उस सीनियर का व्यवहार मिलनसार इसलिए है कि वह आप पर काम का बोझ डाले बिना या काम का दबाव बनाए बिना भी आपसे बेहतर परफॉर्म करवा सके। इसका मतलब ये हर्गिज़ नहीं है कि वह आपका दोस्त बनने के लिए काम से समझौता कर लेगा या आपकी भूलों को नज़रअंदाज़ कर देगा। अगर आप किसी सीनियर ओहदे पर हैं तो अपने से जूनियर को अपना नौकर या ग़ुलाम समझने की ग़लती न करें। उनके साथ अपना व्यवहार गरिमापूर्ण ढंग का बनाए रखिए। अगर वे ग़लती करते भी हैं या बार-बार ग़लती दोहराते हैं तो उन्हें सिखाने के बहुत से तरीके हो सकते हैं, सिवाय उनके साथ डांट-डपट करने के या बात-बात में उनका अपमान करने के। आप सीनियर हैं ही इसलिए कि आप उनकी ग़लतियों को ठीक कर सकते हैं या उन्हें सिखा सकते हैं। अपने सहकर्मियों के अलावा आपका व्यवहार ऑफिस के बाकी स्टाफ के साथ कैसा है, ये बात भी बहुत मायने रखती है, चाहे वह कोई भी काम क्यों न करते हों। याद रखिए कि एक ऑफिस में ऑफिस ब्वॉय भी उतना ही ज़रूरी होता है, जितना कि मैनेजर, बस दोनों के काम ही उनकी योग्यता के अनुसार अलग हैं, लेकिन अहमियत दोनों की ही है। 

तो ये थे छोटे-छोटे कुछ टिप्स, जिनसे आप अपने करियर को नई ताज़गी भी दे सकते हैं और एक ऊंचाई भी। फ़ैसला है आपका, आख़िर करियर है आपका।