वक़्त ने बहुत कुछ बदला और उस बदले वक़्त के साथ ही तालमेल बिठाते हुए महिलाओं ने भी अपने में बहुत कुछ बदला और घर की दहलीज़ से लेकर बाहर की दुनिया तक अपनी शक्ति और सामर्थ्य के परचम लहराए। यहां तक कि जो क्षेत्र कुछ अर्सा पहले तक केवल पुरुष वर्चस्व के अधिकार क्षेत्र माने जाते थे, आज महिलाएं वहां भी मौजूद हैं, लेकिन एक बात जो न कल दहलीज़ के भीतर बदली थी और न आज के विकासशील आधुनिक-उन्नत समाज में बदली है, वह है महिलाओं पर पड़ती बुरी नज़रें, यानी महिलाओं के प्रति होते यौन अपराध। ये एक ऐसा कड़वा है, जो न कल बदला था, न आज बदला है कि बात चाहे घर की हो या बाहर की, महिलाओं के प्रति बढ़ते यौन अपराध हर रोज़ अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते नज़र आते हैं। ऐसे में इस विषय को समझना और इसके प्रति जागरूक होना सभी के लिए बहुत आवश्यक है। लिहाज़ा, आइए जानते हैं कुछ इसी बारे में।
कैसे व्यवहार को मानें सेक्सुअल हैरेसमेंट
वर्कप्लेस पर महिलाओं और पुरुषों का साथ काम करना बड़ी सामान्य सी बात है। ऐसे में साथ खाना-पीना, हंसी-मज़ाक भी सहज बर्ताव का ही रूप हैं। यहां तक कि अगर दो वयस्क लोगों की आपसी सहमति से और बिना किसी मजबूरी या दबाव के उनके बीच यौनिक संबंध बने हैं तो यह भी यौन हिंसा के अंतर्गत आने वाला मामला नहीं माना जाएगा।
इसे तो बेशक हम सेक्सुअल हैरेसमेंट, यानी कि यौन हिंसा नहीं मान सकते, लेकिन हां, अगर हंसी-मज़ाक, टिप्पणी, कॉमेंट, तारीफ़ की सीमा किसी महिला की गरिमा को लांघे तो यह सेक्सुअल हैरेसमेंट के दायरे में आ जाता है। इसके अंतर्गत द्विअर्थी मज़ाक करना या जोक सुनाना, पोर्न दिखाना, किसी महिला की शारीरिक देहयष्टि पर अश्लील टिप्पणी करना, किसी महिला की आज्ञा के बिना या अनिच्छा होने पर भी जान-बूझकर या बार-बार किसी न किसी बहाने से महिला को छूना, महिला को अश्लील इशारे करना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना, अश्लील फोटो या संदेश दिखाना वग़ैरह ये सभी यौन अपराध के अंतर्गत आता है।
साल 2013 में आए कानून में भी साफ़ तौर पर यह बात कही गई है कि किस तरह के व्यवहार को यौन हिंसा माना जाएगा। इसमें कहा गया था कि कार्यस्थल पर ऐतराज़ करने के बावजूद छूना या छूने की कोशिश करना, यौन संबंध बनाने की मांग करना या उसके लिए बाध्य करना, अश्लील भाषा का इस्तेमाल करना वग़ैरह यौन उत्पीड़न के अंतर्गत किया गया व्यवहार माना जाएगा। इसे न सिर्फ़ कार्यस्थल पर मान्य किया गया, बल्कि मीटिंग की जगह पर, ऑफिस के काम से कहीं बाहर जाने के दौरान, घर पर, रास्ते में सफ़र के दौरान आदि स्थानों, समय व स्थितियों को भी इसी के अंतर्गत रखा गया है। साथ ही कानूनी रूप से इसका पालन करना सभी सरकारी, निजी, संगठित अथवा असंगठित क्षेत्रों के लिए अनिवार्य है।
यहां तक कि अब अगर इसके बदले व संशोधित रूप को देखा जाए तो किसी का पीछा करना या निरंतर घूरना आदि को भी आपत्तिजनक बर्ताव की सीमा के अंदर ही माना गया है।
कौन कर सकता है सेक्सुअली हैरेस
यह एक बहुत ही कठिन सवाल है, क्योंकि जैसाकि हमने शुरू में ही कहा था कि चाहे घर हो या बाहर, महिलाएं यौन अपराधों से किसी जगह भी अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती हैं। यदि घर पर ऐसा करने वाला कोई अपना, परिचित या विश्वासी व्यक्ति होता है तो कार्यस्थल पर तो लोगों के लिए ऐसा करना और भी आसान हो जाता है, क्योंकि वहां पर तो अधिकांश लोग पराये ही होते हैं। कोई वरिष्ठ अधिकारी अपने पद का फ़ायदा उठाकर ऐसा कर सकता है, कोई सहकर्मी निकटता या मैत्रीपूर्ण व्यवहार के नाम पर ऐसा बर्ताव कर सकता है। यहां तक कि ऐसा दुस्साहस कई बार कोई जूनियर या अधीनस्थ कर्मचारी तक कर जात है और इस विषय में संवेदनशील होने के चलते अधिकांश महिलाएं चुप्पी साध लेती हैं। घर में यह बात रिश्तों को बचाए रखने के लिए, लोक-लाज या बदनामी के चलते दबा दी जाती है तो कार्यस्थल पर कई बार आर्थिक कारणों के कारण या नौकरी चली जाने के डर से भी महिलाएं यौन उत्पीड़न या अपराध के प्रति आवाज़ नहीं उठाती हैं। लिहाज़ा यहां इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि यौन अपराध करने वाला पुरुष कोई भी हो सकता है, परिजन, परिचित, सहकर्मी या कोई अजनबी तक।
पुरुष भी होते हैं सेक्सुअल हैरेसमेंट के शिकार
इस बात पर कुछ लोगों को हैरानी हो सकती है, मगर सच यही है कि कुछ समय पहले तक सिर्फ़ महिलाएं ही यौन हिंसा या उत्पीड़न की शिकार मानी जाती थीं, लेकिन आज का पूरा सच यही है कि पुरुष भी इस अपराध से बचे नहीं हैं। जी हां, पुरुष भी होते हैं सेक्सुअल हैरेसमेंट के शिकार।
जहां महिलाओं पर यह उत्पीड़न करना बड़ा आसान सा सामान्य मान लिया जाता है, वहीं पुरुषों के उत्पीड़न में ज़्यादातर महिलाएं उस वर्ग की होती है, जो उस पुरुष पर अपना दबाव, यानी वर्चस्व स्थापित कर सकें। ये महिला कोई बॉस भी हो सकती है या सीनियर भी। यहां पर यौन उत्पीड़न के लक्षणों के अंतर्गत वही बातें आती हैं, जो कि महिलाओं के मामलों में देखने को मिलती हैं।
क्या करें सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार होने पर
यौन उत्पीड़न को कानूनी रूप से अपराध माना गया है और इस विषय में कार्रवाई करने के लिए सभी संस्थान बाध्य हैं चाहे वह सरकारी हो, ग़ैर सरकारी हो, संगठित हो या असंगठित हो। इस कानून के अनुसार ऐसे हर संस्थान के लिए इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी बनाना अनिवार्य है, जहां दस से अधिक महिलाएं काम करती हों। इस कमेटी की आधी सदस्य महिलाएं होना ही ज़रूरी है, जिनमें से एक महिला ऐसी हो, जो ऐसी किसी ग़ैर सरकारी संस्था की सदस्य हो, जो कि महिलाओं के हितों के लिए कार्य करती हो।
यदि शिकायत सीधे मालिक के ही ख़िलाफ़ हो या उस संस्थान में दस से कम महिलाएं काम करती हों तो यौन उत्पीड़न की शिकायत ज़िला स्तर पर बनी हुई लोकल कंप्लेंट्स कमेटी में की जा सकती है। शिकायत चाहे किसी भी कमेटी के पास की गई हो या किसी भी स्तर पर की गई हो, उसकी सच्चाई की जांच-परख करना सभी के लिए बेहद ज़रूरी है।
यदि शिकायत सही है तो नौकरी से निकालने, मुआवज़ा देने से लेकर दंड तक का प्रावधान है और अगर शिकायत झूठी निकली तो भी उचित कानूनी व्यवस्था है।
सेक्सुअल हैरेसमेंट से बचने के कुछ उपाय