महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच है सेक्शन 498-ए
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महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच है सेक्शन 498-ए

दहेज़ प्रताड़ना से जुड़े मामलों में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सेक्शन 498-ए किसी वरदान से कम नहीं

महिलाओं के लिए सुरक्षा कवच है सेक्शन 498-ए

बड़ा ही अनोखा बंधन है शादी का। एक तरफ़ जहां शादी के बंधन में बंधने वाले दो लोगों की ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाती है, एक नए रिश्ते की शुरुआत होती है, जिंदगी में प्यार का आग़ाज़ होता है। दूसरी तरफ़ शादी एक ऐसा रिश्ता भी है, जिसके द्वारा सिर्फ़ दो लोग ही नहीं, दो परिवार, दो ख़ानदान भी जुड़ते हैं। कुछ पुराने रिश्ते दूर होते हैं तो कुछ नए रिश्ते ज़िंदगी में जगह बनाते हैं और कहा जाता है कि इसी तरह से बनता है एक लड़की का अपना घर, अपना परिवार। अब कहने-सुनने में तो यह बात बहुत अच्छी लगती है कि किसी भी लड़की के लिए शादी के बाद उसका ससुराल ही सही मायनों में उसका अपना घर होता है, जहां कि वह गृहलक्ष्मी होती है, जहां उसे बहुत सारे रिश्तों से, बहुत सारा प्यार मिलता है, वग़ैरह-वग़ैरह। इसका दूसरा पक्ष यह है कि कुछ लड़कियों के लिए शादी का बताया गया यह सच ही सबसे बड़ा झूठ साबित होता है, क्योंकि ससुराल वालों के लिए वे गृहलक्ष्मी नहीं, सिर्फ़ लक्ष्मी होती हैं, जो ख़ूब सारा दहेज़ लेकर आए और सिर्फ़ एक बार ही नहीं, बल्कि बार-बार, अलग-अलग मौक़े-बेमौके पर लाती ही रहे और अपने ससुराल वालों का लालची पेट भरती ही रहे।
भारत में यह आज भी इतना कड़वा सच है कि दहेज़ के कारण ही कई लड़कियों की शादी हो ही नहीं पाती तो कई लड़कियों की शादी टूट जाती है या उन्हें हद से ज़्यादा परेशान किया जाता है। घरों के भीतर महिलाओं पर लगातार होने वाले अत्याचारों का एक बहुत बड़ा कारण है दहेज़। इसके चलते न तो दहेज़ हत्याओं के मामले कम हैं, न ही दहेज़ के कारण होने वाले अत्याचारों से तंग आकर की जाने वाली आत्महत्या के मामले में कोई कमी आती है। लिहाज़ा दहेज़ प्रताड़ना से जुड़े मामलों में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सेक्शन 498-ए किसी वरदान से कम नहीं है। आइए, जाने इसके बारे में कुछ- 


-क्या है सेक्शन 498-ए

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सेक्शन 498-ए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आने वाली वह व्यवस्था है, जो दहेज़ संबंधी मामलों में प्रभावी है। इस धारा के चलते न सिर्फ़ प्रताड़ित महिलाओं को नए सिरे से जीवन मिला है, वहीं उन मामलों में भी इंसाफ़ हुआ है, जहां दहेज़ के कारण किसी महिला को अपना जीवन तक गंवाना पड़ा।

- सेक्शन 498-ए का कानूनी स्वरूप क्या है?

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किसी विवाहित महिला या उसके मायके पक्ष के लोगों को दहेज़ के लिए उकसाना, दबाव बनाना या दहेज़ न दे पाने की स्थिति में उनका उत्पीड़न करना सेक्शन 498-ए के अंतर्गत मामला बनता है। दहेज़ के अंतर्गत भी कई चीज़ें आती हैं, जैसे- धन, संपत्ति, आभूषण, वाहन या कोई अन्य कीमती सामान वग़ैरह। विवाहित महिला से, उसके परिजनों से या फिर शादी के लिए होने वाले रिश्ते में इनकी मांग करना या देने के लिए बाध्य करना एक कानूनी अपराध है। यह उत्पीड़न शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से भी हो सकता है। यह एक बेहद गंभीर अपराध माना जाता है, जिसके चलते इसमें ज़मानत का प्रावधान नहीं है। साथ ही महिला के द्वारा आरोपित किए गए सभी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ संज्ञान लिया जा सकता है।

- सेक्शन 498-ए किन लोगों पर प्रभावी है?

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यह मामला इतना संवेदनशील है कि घर के भीतर होने वाली इस तरह की प्रताड़नाओं में गवाह जुटाना तक मुश्किल होता है, इसीलिए भारतीय कानून ने महिलाओं को एक वरदान की तरह यह कानूनी प्रावधान दिया है। इस मामले में प्रताड़ित महिला द्वारा ससुराल पक्ष के लोगों में से नामज़द किए गए सभी के विरद्ध यह कानून प्रभावी होता है, जैसेकि- पति, सास-ससुर, देवर-देवरानी, जेठ-जिठानी या ससुराल पक्ष का ही कोई अन्य व्यक्ति। 

- सेक्शन 498-ए में दंड का प्रावधान क्या है?

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इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। यदि इस मामले में प्रताड़ित महिला की मौत हो जाती है और ऐसा शादी के सात साल के अंदर हुआ हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के अंतर्गत मामला दर्ज कर सकती है। दहेज़ निरोधक कानून के नाम से भी जाना जाने वाला यह कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। यदि दहेज़ निरोधक कानून की धारा 8 के अंतर्गत देखें तो किसी भी रूप में दहेज़ लेना और देना, दोनों ही कानूनी रूप से अपराध है। इसमें दहेज़ देने वाले भी बच नहीं सकते, बल्कि धारा 3 के अंतर्गत दर्ज हुए मामले में दोषी पाए जाने पर पांच साल तक की सज़ा का प्रावधान है। दहेज़ की मांग अगर शादी से पहले की गई है, तब भी यह मामला धारा 4 के अंतर्गत आता है और इसमें सज़ा का प्रावधान है। 

- सेक्शन 498-ए के दुरुपयोग की कितनी संभावना है?

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भारत में न जाने कितनी ही महिलाएं दहेज़ के कारण पूरी ज़िंदगी प्रताड़ित होती रहती हैं तो न जाने कितनी ही महिलाओं का जीवन तक दांव पर लग जाता है। कई मामले जहां ऐसे थे कि इस उत्पीड़न के साक्षी कई लोग हो सकते थे तो कई मामले में यह तक भी देखने को मिला कि घर के भीतर हो रहे इस अपराध में गवाह जुटान मुश्किल था। इन्हीं कारणों के चलते इस कानून को इतना संवेदनशील और लचीला रखा गया कि प्रताड़ित महिला का बयान ही काफ़ी मान लिया जाता है। उसके द्वारा नामज़द किए गए सभी व्यक्ति अपराधी की श्रेणी में आ जाते हैं। यही बात इस कानून के दुरुपयोग का कारण भी बनी। सबसे राहत की बात यह है कि इस कानून को हल्के में लेकर दुरुपयोग करने वालों के ख़िलाफ़ भी कड़े कानूनी प्रावधान व सज़ा तक की व्यवस्था है। 

- सेक्शन 498-ए के अंतर्गत शिकायत कैसे दर्ज करवाई जा सकती है?

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भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में यह व्यवस्था रखी गई है कि सेक्शन 498-ए के अंतर्गत दर्ज किए गए मामले में अगर शिकायत दर्ज की जाती है तो यह समय घटना के तीन वर्ष के भीतर तक का हो सकता है। यह शिकायत प्रताड़ित महिला या उसके मायके पक्ष की ओर से कराई जा सकती है। इतना ही नहीं, बल्कि प्रताड़ित महिला को न्याय दिलाने के लिए कानून में यह तक व्यवस्था है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 473 में अगर न्यायालय को यह लगता है कि कानून के पक्ष में किसी को न्याय दिलाने के लिए ऐसा किया जाना चाहिए तो यह शिकायत समयसीमा समाप्त हो जाने के बाद भी की जा सकती है। यह शिकायत स्वयं प्रताड़ित महिला द्वारा, उसके परिजनों द्वारा, किसी एनजीओ द्वारा या महिला आयोग की सहायता लेकर अपने क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में दर्ज करवाई जा सकती है।