प्रकृति से प्यार का त्यौहार है ओणम!
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प्रकृति से प्यार का त्यौहार है ओणम!

ओणम केरल में ख़ासतौर पर मनाया जाने वाला त्यौहार है। क्या है इस दिन से जुड़ी विशेषताएं , आइए जानें।

प्रकृति से प्यार का त्यौहार है ओणम!

अगर उत्तर भारत में रहते हुए ओणम को समझना हो तो इसे दक्षिण में केरल की महकती दीवाली कह सकते हैं। दीवाली इसलिए, क्योंकि केरल में इस त्यौहार का वही महत्व है, जितना उत्तर भारत में दीवाली का और महकती हमने इसलिए कहा, क्योंकि केरल में इस दिन सजावट दीयों से ही नहीं, बल्कि ख़ासतौर पर फूलों से भी की जाती है। असल में और जो चाहे कह लें, लेकिन ओणम प्रकृति से प्यार का त्यौहार है, जिसकी छटा देखते ही बनती है। अगर केरल के लिए यह त्यौहार उनकी भावनाओं से जुड़ा है तो बाकी के भारत के अलावा विदेशों तक में इस त्यौहार के मनाने के ढंग को उत्सुकता और दिलचस्पी से देखा जाता है। तो चलिए, कुछ बातें आज हम ओणम के बारे में ही जानें-

क्यों मनाया जाता है ओणम

Credit: CitySpidey


मलयालम कैलेंडर के पहले महीने चिंगम की शुरुआत में मनाया जाने वाला त्यौहार ओणम के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भक्त प्रह्लाद का पौत्र और देवांबा के पुत्र राजा बलि एक अत्यंत योग्य और विद्वान राजा थे। असुर होने के बावजूद वे देवताओं का भी बहुत आदर करते थे। उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी यह थी कि वे अपनी प्रजा को बहुत प्यार करते थे और उसके सभी हितों का ध्यान रखते थे। बहुत गुणी होने के बावजूद राजा बलि की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह थी कि वे बहुत अधिक महत्वाकांक्षी भी थे और अपने साम्राज्य को चारों दिशाओं में फैला देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक बार स्वर्ग पर ही आक्रमण करके देवताओं को पराजित कर दिया। अब उनका साम्राज्य तीनों लोकों में था। इससे दुखी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और एक छोटे से ब्राह्मण को वेश बना कर राजा बलि के पास पहुंचे और रहने के लिए थोड़ी सी भूमि मांगी। राजा बलि उस समय यज्ञ करने के बाद दान कर रहे थे। उनमें अपने पराक्रम और दानशीलता के चलते अभिमान भी आ गया था। सो जब बौने ब्राह्मण ने उनसे तीन पग भूमि मांगी तो वे अभिमान से हंस पड़े, लेकिन वामन रूपी विष्णु ने दो ही पग में सारा ब्रह्मांड नाप डाला और तीसरे पग के लिए ज़मीन मांगी तो राजा बलि ने अपनी ग़लती मानते हुए सिर झुका दिया और तीसरा पग वहां रखने को कहा। पग रखने के दबाव के चलते राजा बलि पाताल में धंस गए, लेकिन जाते-जाते उन्होंने यह प्रार्थना की कि वर्ष में एक बार उन्हें धरती पर वापस आने दिया जाए, ताकि वे निश्चिंत हो सकें कि उनकी प्रजा सुखी और संपन्न है। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद से हर साल वे एक बार धरती पर आकर अपनी प्रजा का सुख-दुख जानने की कोशिश करते हैं। उन्हीं के आने की ख़ुशी और स्वागत में यह त्यौहार ओणम मनाया जाता है। यह थी वह कथा, जो ओणम के त्यौहार के साथ सुनी-सुनाई जाती है।

कैसे मनाया जाता है ओणम

Credit: eastcoastdailyenglish.in


हंसी, ख़ुशी और मौज-मस्ती से भरा यह त्यौहार ओणम इतना ख़ास है कि केरल के पर्यटन तक में बड़ा सहयोग देता है, जिसे देखने हर साल लाखों देशी-विदेशी टूरिस्ट ख़ासतौर से यहां आते रहे हैं। यह त्यौहार अपने मूल रूप में दस दिन चलता है। पहले दिन यानी कि 'अथम' के दिन सुबह-सुबह आंगन में फूलों की रंगोली बनाई जाती है, जिसे 'पूकलम' कहते हैं। पहले दिन इसका आकार थोड़ा छोटा होता है और फिर हर दिन बढ़ते-बढ़ते दसवें दिन, यानी 'थिरुवोणम' के दिन तक एक ख़ूब बड़े सर्कल में बदल जाता है। घरों के बाहर बहुत ही बड़े-बड़े दीये और लैंप जलाए जाते हैं। इस दिन सुबह से ही हर्ष का माहौल होता है। लोग सुंदर-सुंदर पोशाकों में सजते-संवरते हैं। महिलाएं ख़ास तौर पर क्रीम कलर की सुनहरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनती हैं और मिल-जुलकर फूलों की रंगोली के इर्द-गिर्द नृत्य करती हैं। घर में तरह-तरह के व्यंजन बनते हैं, जैसेकि सांभर, रसम, अवयल, पापड़म, पयसम आदि। तरह-तरह की रंगीन चटनियां और अनेक  तरह की सब्ज़ियां बनाई जाती हैं, जिन्हें ब्राउन राइस के साथ केले के पत्ते पर परोसा जाता है। इस दिन लंबी-लंबी नौका दौड़ भी आयोजित की जाती हैं बहुत बड़े पैमाने पर। हाथियों को सजाकर रैली निकाली जाती है। लोग झूला झूलते हैं। तरह-तरह के खेल आयोजित किए जाते हैं। 

इस त्यौहार की विशेषता क्या है

Credit: thehindu.com


भारत के अनेक त्यौहारों के पीछे यह ख़ासियतें छिपी होती हैं कि उनमें कोई न कोई सार होता है। अब ओणम के त्यौहार को ही ले लीजिए तो अगर इससे जुड़ी पौराणिक कहानी यह बताती हैं कि आदर्श शासक वही होता है, जिसे अपनी प्रजा के सुख की, हितों की परवाह हो तो दूसरी तरफ़ यह भी बताती है कि घमंड चाहे अपनी अच्छाई का ही क्यों न हो, सही नहीं होता है। इस पूरे त्यौहार में जो सादगीपूर्ण भव्यता मिलती है, वह अपनी मिसाल आप है, चाहे वह पहली फसल के फल-सब्ज़ियों और अनाज से बने तरह-तरह के व्यंजनों का केले के पत्ते पर खाना हो, फूलों की सजावट हो, बाग़ों में जाकर झूले झूलना हो या नौका दौड़, सभी प्रकृति से नज़दीकी का रूप हैं, प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका है और प्रकृति से प्यार करने का ढंग है। मनुष्य का अस्तित्व ही तभी है, जब वह प्रकृति के रंग में रंग जाए तो प्रकृति भी मनुष्य के जीवन को संवारने-संजाने में कसर नहीं छोड़ती। यही कहता है ओणम का त्यौहार!  हम भी आपसे कह रहे हैं, ओणम आशमसकल, यानी ओणम की शुभकामनाएं!