हैरत में पड़ जाएंगे आप मौन के लाभ जानकर
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हैरत में पड़ जाएंगे आप मौन के लाभ जानकर

आज की भागदौड़ और शोर-शराबे भरी ज़िंदगी में मौन का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। क्या हैं मौन के लाभ

हैरत में पड़ जाएंगे आप मौन के लाभ जानकर

आपको याद है कि आख़िरी बार आप मौन कब हुए थे? शायद कभी कोई ज़रूरी काम करते हुए, किसी मीटिंग के दौरान, किसी की श्रद्धांजलि या शोक सभा में, किसी लड़ाई के बाद गुस्से में? क्या कभी आपने यूं ही ख़ामोश रहकर अपने इस मौन की शक्ति को महसूस किया है? अगर नहीं तो आपको मौन के लाभ हैरानी में डाल देंगे। मौन न केवल आपको दिलोदिमाग की शांति देता है, बल्कि एक इंसान के तौर पर भी आपको थोड़ा और बेहतर होने में मदद करता है। यहां तक कि मौन के लाभ तो सदियों पहले वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुके हैं। इसमें हैरान होने की कोई बात नहीं है, क्योंकि आज की भागदौड़ और शोर-शराबे भरी ज़िंदगी में हम सभी सुकून के कुछ पलों को तरस जाते हैं। ऐसे में कई बार शिद्दत से बस इस बात का मन करता है कि कहीं ऐसी जगह चले जाएं, जहां हमें कुछ देर को दिलोदिमाग की शांति मिल जाए। मन की शांति के लिए आपको कहीं दूर जाने की नहीं, बस अपने पास आने की ज़रूरत है। इसमें कुछ देर का मौन भी आपके लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकता है। तो चलिए, आज जानते हैं मौन के कुछ ऐसे ही लाभों के बारे में, जिनसे हम अपने जीवन को थोड़ा और बेहतर, थोड़ा और शांत बना सकते हैं। 

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मौन की शुरुआत सिर्फ़ ज़बानी तौर पर ख़ामोश होने से ही होती है। बस अपनी सुविधा से कोई भी समय, स्थान या दिन चुन लीजिए, जब आप थोड़ी देर ख़ामोश, यानी मौन होकर बैठ सकें। ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है, क्योंकि यदि आप चाहें तो दिन का कोई न कोई समय, कोई न कोई स्थान ऐसा निकल ही आएगा, जब आप कुछ देर तक मौन रह सकें। चाहे वह जगह आपका घर हो, ऑफिस या वर्कप्लेस हो, कोई पार्क हो या फिर सड़क पर चलते या सफ़र करते ही क्यों न हो। दरअसल, मौन में महत्व जगह का नहीं, भाव का होता है। जैसाकि हमने कहा कि शुरुआत सिर्फ़ ज़बानी ख़ामोशी से होती है। फिर धीरे-धीरे आपकी आंखें सिर्फ़ लक्ष्य पर केंद्रित होने लगती हैं। सांस की गति धीमी होकर एक लय सी बना लेती है। आपका मन शांत होकर एकाग्र होने लगता है। 

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आपका दिमाग ग़ैर ज़रूरी चीज़ों को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ़ ज़रूरी चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने लगता है। 

अपने में रहते हुए आप चीज़ों के प्रति ज़्यादा गंभीर और संवेदनशीलता महसूस करने लगते हैं।

आप कम शब्दों की शक्ति और शांत ढंग से कही गई बात का  प्रभाव साफ़ तौर पर देखने लगते हैं। 

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फोन जैसी चीज़ पर हमारी निर्भरता की सीमा तय हो जाती है। यह समझ में आने लगता है कि बहुत ज़्यादा बोलने की बजाय कम और सार्थक बोलना कितना सुकूनदायक होता है। 

इससे हम कई ग़ैर ज़रूरी बहस-विवादों से भी बच जाते हैं, क्योंकि आज के समय में अपने दिलोदिमाग़ की शांति बचाना एक तरह से हमारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है। हम बाहरी तौर पर किसी से ये उम्मीद नहीं कर सकते।

मौन की शक्ति इतनी है कि यह हमें सिर्फ़ एक इंसान के रूप में ही बेहतर नहीं बनाती है, बल्कि अपने परिवेश और पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील और जागरूक करती है। 

हम अपने आसपास की चीज़ों को बेहतर ढंग से देख पाते हैं, महसूस कर पाते हैं, उनके प्रति ज़्यादा जवाबदेह और संवेदनशील हो पाते हैं। 

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यह एक बहुत बड़ी ख़ूबी है, क्योंकि कोरोना-काल ने अभी हाल ही में हमें ये सीख दी है कि जितनी ज़रूरत हमें अपनी प्रकृति की और प्राकृतिक संसाधनों की है, उतनी और किसी चीज़ की नहीं। 

मौन अपने-आप में ध्यान की एक विधि है और ध्यान के लाभ से भला कौन वाकिफ़ नहीं होगा। बस फ़र्क इतना है कि कुछ लोगों ने इस लाभ के बारे में सिर्फ़ पढ़ा-सुना होता है और कुछ ने स्वयं महसूस करके देखा होता है।

मौन हमें दूसरों से दूर नहीं ले जाता है, बल्कि स्वयं अपने पास लाता है। जब हम अपने आप को एक इंसान के रूप में और बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं तो दुनिया भी अपने आप थोड़ी और बेहतर बनती जाती है। 

मौन की शक्ति महसूस करने के लिए आपको कहीं, किसी से दूर एकांत में जाकर आसन जमाने की ज़रूरत नहीं है। अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ही कुछ पल तलाश लीजिए अपने लिए, चाहे वह कुछ मिनट ही क्यों न हों। 

धीरे-धीरे आपको अपनी ख़ामोशियों की गुनगुनाहट अपने-आप महसूस होनी शुरू हो जाएगी। तब आपके फ़ैसले पहले से ज़्यादा बेहतर और सटीक होंगे। ज़िंदगी की उलझनों के रास्ते अपने सामने ही खुलते नज़र आने लगेंगे। समस्याओं से ज़्यादा आप अपने आपको समाधान का हिस्सा बना हुई पाएंगे, क्योंकि आपका शांत दिलोदिमाग इसमें सक्षम होगा। दुनिया से आपको शिकायतें कम महसूस होने लगेंगी, क्योंकि कुछ स्थितियों के जवाब आपके अपने पास होंगे। 

यकीन न हो तो आज़मा कर देख लीजिए मौन की शक्ति को। आख़िरकार हम यही तो चाहते हैं, एक शांत दिल, एक शांत दिमाग़।