मिशेल डेविड- उम्र इरादों के आड़े नहीं आती
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मिशेल डेविड- उम्र इरादों के आड़े नहीं आती

मिशेल डेविड- उम्र इरादों के आड़े नहीं आती

मूल रूप से उत्तराखंड से जुड़ीं, पिछले कई सालों से दिल्ली के द्वारका कि निवासी और पेशे से फैशन फोटोग्राफर मिशेल डेविड बचपन से ही अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित रही हैं। वे कभी भी सिर्फ़ अपने इस प्रोफेशन तक ही सीमित नही रहीं, जो कि उनका शौक़ भी है। महज़ पांच साल की उम्र में, यानी जब बच्चे अपनी चॉकलेट तक शेयर करने में संकोच करते हैं, मिशेल डेविड अपने खिलौने, कपड़े, खाना-पीना और दूसरी चीज़ें ज़रूरतमंद बच्चों के साथ शेयर करना सीख चुकी थीं। इसका श्रेय जाता है, मिशेल डेविड की मां को, जो कि ख़ुद एक समाजसेविका हैं। सो समाज के साथ मिलने-बांटने का ये सिलसिला उम्र के साथ बढ़ता चला गया।

फिर ये बात काफ़ी उभरकर उनके सामने आई कि उनके आस-पास जो सबसे पहली ज़रूरत एक चुनौती की तरह आड़े आ रही है, वह है, शिक्षा और स्वास्थ्य। ज़ाहिर है कि यह कोई छोटा-मोटा लक्ष्य नहीं था। सो उन्होंने कई स्वयंसेवी संगठनों के साथ काम करना शुरू कर दिया और ‘रॉबिनहुड आर्मी’ में भी काफ़ी बढ़-चढ़कर सक्रिय हो गईं।

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वे जगह-जगह जाकर लोगों के बीच सेवा-भाव से काम करतीं और उनका विश्वास जीततीं। बदले में उन्हें मिलता ढेर सारा प्यार और सम्मान। फिर भी ये सब आसान तो बिल्कुल नहीं था, क्योंकि वे जिस वर्ग के बीच काम कर रही थीं, वहां शिक्षा से भी बड़ी चुनौती थी, भूख। जी हां, रोटी से बढ़कर ज़रूरी इस दुनिया में और कुछ भी नहीं होता, इसलिए  जिन बच्चों के बीच जाकर मिशेल काम कर रही थीं, उनके लिए शिक्षा और सेहत दोनों ही बाद की बातें थीं, पहली ज़रूरत थी- खाना जुटाना। इस वजह से वे लोग चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़ने-लिखने की बजाय कुछ काम करने में लग जाएं, ताकि परिवार की आमदनी को सहारा मिल सके।

ज़िंदगी की इतनी बड़ी सच्चाई मिशेल के सामने थी, लेकिन वे अपनी मंज़िल भी जानती थीं और उस तक पहुंचने के रास्ते पर भी पूरी कर्मठता से जुटी थीं। उनकी मेहनत और मदद बेकार नहीं गई। वे काफ़ी लोगों को ये समझाने में कामयाब रहीं कि जो ज़िंदगी वे जीने पर मजबूर हैं, कम से कम उनके बच्चे तो वैसी ही ज़िंदगी जीने को अभिशप्त न हों। शिक्षा से कोई भी अपनी किस्मत बदल सकता है, परिस्थितियों के साथ लड़ सकता है। अपने आज के संघर्ष से आने वाले कल को बेहतर बना सकता है। साथ ही मिशेल उनकी हरसंभव मदद भी करती थीं।

लोगों पर उनकी बात का असर भी हुआ और उनमें से कइयों में बदलाव भी आया। इसके बावजूद मिशेल को अक्सर ये बात कसक की तरह महसूस होती है कि वे अपने से जुड़े हर बच्चे के लिए बहुत-कुछ नहीं कर पाईं। कई जगह वे उन बच्चों के माता-पिता को समझाने में नाकामयाब रहीं, मगर ये बात भी मिशेल की जुझारुता ही ज़ाहिर करती है। मिशेल इस बात का असल ज़िम्मेदार अगर किसी को मानती हैं तो वे केवल ऐसे हालात हैं, जिनमें एक इंसान इतना मजबूर हो जाता है कि उसे अपने बच्चे के भविष्य से ज़्यादा वर्तमान की भूख की चिंता रहती है। यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब पूरे समाज, पूरे देश और देश के हर नागरिक को मिलकर ढूंढ़ना होगा।

आज कई बच्चे मिशेल की कोशिशों से और शिक्षा की बदौलत अपना जीवन संवारने में लगे हैं। कई बच्चे उच्च शिक्षा तक के पायदान पर पहुंचे हैं। कई बेहतरीन रोज़गार के अवसर अपने लिए जुटा चुके हैं। ये सब मिशेल को संतुष्टि नहीं देता, बल्कि हर पल ये एहसास दिलाता है कि अगर उनकी कोशिशों से इन बच्चों का जीवन बदल सकता है तो उन्हें अपने सामाजिक सरोकारों की रफ्तार और तेज़ करनी होगी। मंज़िल अभी दूर है...

सिटी स्पाइडी परिवार मिशेल डेविड को उनके इस जज़्बे के लिए सलाम करता है और सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता है।