रोग से बचाने की बजाय बीमार न कर दे आपका (Sanitizer) सैनेटाइज़र!
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रोग से बचाने की बजाय बीमार न कर दे आपका (Sanitizer) सैनेटाइज़र!

सैनेटाइज़र के इस्तेमाल के काफ़ी फ़ायदे हैं, लेकिन इसका ज़्यादा प्रयोग आपको बीमार भी बना सकता है।

रोग से बचाने की बजाय बीमार न कर दे आपका (Sanitizer) सैनेटाइज़र!

(Hand Sanitizer) हैंड सैनेटाइज़र का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है, बल्कि सेहत के प्रति जागरूक लोगों के पास तो यह हमेशा से नज़र आता था। फिर कोरोना-काल में हैंड सैनेटाइज़र का नियमित इस्तेमाल करना एक बेहद ज़रूरी बात बन गई और कोरोना से बचाव के लिए इसने एक सुरक्षा कवच जैसी भूमिका भी अदा की। स्वास्थ्य और सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा करना बेहद ज़रूरी भी था और अब तो इसका इस्तेमाल सभी के लिए एक आम बात है। दिक्कत सैनेटाइज़र का प्रयोग करने में नहीं है, क्योंकि बेशक ऐसा करना कई रोगों से बचाव का काम करता है। समस्या तब पैदा होती है, जब कुछ लोग सैनेटाइज़र का प्रयोग दिन में कई-कई बार करते हैं। वे बिना सैनेटाइज़ किए किसी भी चीज़ को छूते तक नहीं हैं और हर चीज़ को छूने के बाद सैनेटाइज़र की बोतल की तरफ़ लपक पड़ते हैं। बात-बात पर या बिना ज़रूरत भी कई बार सैनेटाइज़र लगाते रहते हैं और उनके पास इस बात के समर्थन में अपने तर्क हैं, लेकिन यहां हमें थोड़ा ध्यान विशेषज्ञों की इस बात पर भी देना चाहिए कि ज़रूरत से ज़्यादा सैनेटाइज़र का इस्तेमाल रोगों से बचाव करने की बजाय कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार बना देता है। आइए जानें, इसी बारे में थोड़ा और विस्तार से।

ख़त्म कर सकता है प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता

सैनेटाइज़र के बहुत ज़्यादा इस्तेमाल के नुकसानदेह पहलुओं में से एक यह भी है कि यह हमारे शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम भी कर सकता है और ख़त्म भी। जैसाकि सभी लोग इस बात को तो जानते ही हैं कि हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से ही ऐसा है, जो कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण या रोकथाम में समर्थ होता है। यदि शरीर एक बार किसी संक्रमण में आ भी जाता है तो अगली बार के लिए यह उसकी प्रतिरोधक क्षमता स्वयं उत्पन्न करने में सक्षम होता है। इसके लिए ज़रूरत होती है, अच्छी सेहत और मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता होने की। इसी कारण अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञ हमेशा बेहतर खान-पान और जीवनशैली संबंधी सही आदतों को अपनाने पर ज़ोर देते हैं, ताकि हमारी स्वाभाविक रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत हो सके। सैनेटाइज़र का हद से ज़्यादा इस्तेमाल सबसे पहले हमारी इसी मज़बूत कड़ी पर प्रहार करता है।

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सैनेटाइज़ की बजाय चुनें हाथ धोने का विकल्प

साफ़-सफ़ाई के साथ-साथ सेहत की दृष्टि से भी सैनेटाइज़र का प्रयोग एक हद तक ही ठीक है। बहुत से लोगों को यह लगता है कि कुछ भी करने या छूने से पहले या फिर उसके बाद हाथों को सिर्फ़ पानी या साबुन से धोना उनके लिए पर्याप्त नहीं है। उनके हाथ पूरी तरह से सैनेटाइज़र के इस्तेमाल से ही साफ़ हो पाएंगे, जबकि यह पूरा सच नहीं है। हाथों का साफ़ रहना ज़रूरी है, चाहे वह साफ़ पानी और साबुन से ही क्यों न किए गए हों। हाथों की सफ़ाई के लिए हैंड सैनेटाइज़र एक विकल्प मात्र है। सामान पर किया गया सैनेटाइज़र स्प्रे तो एकमात्र विकल्प माना भी जा सकता है, लेकिन हाथों या बॉडी के मामले में ऐसा नहीं है। इस विषय में साफ़ पानी से भी आप हाथ धो सकते हैं और ज़रूरत के अनुसार साबुन का चुनाव भी कर सकते हैं।

हो सकता है डर्माटाइटिस अथवा एग्ज़िमा

कई डॉक्टर ये बात कहते हैं कि अगर आप साबुन या पानी से बार-बार हाथ धोते हैं तो यह उतना ख़तरनाक नहीं है, जितना कि अपने कैमिकल की अधिकता के चलते सैनेटाइज़र का बहुत ज़्यादा किया गया इस्तेमाल। यहां तक कि अगर आप नियमित रूप से बीस से पच्चीस सेकेंड तक साबुन से हाथ धोते हैं तो भी कोरोना वायरस जैसे ख़तरे से भी अपना बचाव कर सकते हैं। यहां सैनेटाइज़ केवल एक विकल्प की तरह है। यदि सैनेटाइज़र का प्रयोग बहुत अधिक किया जाए तो डर्माटाइटिस तथा एग्ज़िमा, यानी शरीर पर होने वाली खुजली जैसी समस्या हो सकती है। यह शरीर में रेडनेस, रेशेज़ जैसी समस्याएं तो पैदा करता ही है, साथ ही त्वचा पर चकत्ते, रूखापन और डेमेज जैसी दिक्कतें भी आ सकती हैं।

कुछ तत्व हो सकते हैं फर्टिलिटी और हार्मोन पर दुष्प्रभावी

यदि कुछ विशेषज्ञों के साथ-साथ यूनीवर्सिटीज़ ऑफ कैलीफोर्निया के विद्वानों की बात मानें तो सैनेटाइज़र दो प्रकार के होते हैं। एक तो अल्कोहॉलिक और दूसरे नॉन अल्कोहॉलिक। इनमें से अल्कोहल युक्त सैनेटाइज़र में एथिल नाम का तत्व एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है, जबकि जो सैनेटाइज़र नॉन अल्कोहॉलिक होते हैं, उनमें ट्राइक्लोसन अथवा ट्राइक्लोकार्बन जैसे एंटीबायोटिक कंपाउंड का प्रयोग किया जाता है। कई रिपोर्ट में यह बात कही जा चुकी है कि यह तत्व फर्टिलिटी पर काफ़ी नुकसानदेह असर छोड़ता है। सो माना जा सकता है कि यह भी अपने-आप में एक बड़ी समस्या है। साथ ही कई अन्य कैमिकल ऐसे भी हैं, जो हार्मोन के संतुलन को बिगाड़ने का काम करते हैं। ट्राइक्लोसन के चलते हमारा प्राकृतिक इम्यून सिस्टम भी काफ़ी बुरी तरह से प्रभावित होता है।

कारण बनता है कई स्वास्थ्य समस्याओं का

आपने ग़ौर किया होगा कि कई सैनेटाइज़र से भीनी-भीनी ख़ुशबू भी आती है, जो लुभाने का काम करती है। सैनेटाइज़र में यह ख़ुशबू पैदा करने के लिए प्थालेट्स व पैराबेंस जैसे कैमिकलों का इस्तेमाल किया जाता है। असल में ये कैमिकल काफ़ी ज़हरीले होते हैं, जो शारीरिक विकास को बाधित करने के अलावा हमारी रिप्रॉडक्शन क्षमता पर भी बुरा असर डालते हैं। जिन लोगों की त्वचा अथवा प्रवृत्ति काफ़ी संवेदनशील होती है, वे बार-बार मूड ख़राब होने, स्ट्रेस होने के अलावा एंजायटी के रोगी भी हो सकते हैं। साथ ही सैनेटाइज़र में मौजूद एक और तत्व मैथनॉल भी कई तरह की स्वास्थ्य समस्या पैदा करता है, जैसेकि- जी मितलाना, उल्टी आना, चक्कर आना, सिर दर्द होना, ठीक से नींद न आना, नज़र कमज़ोर होने से लेकर अंधापन तक। सिर्फ़ इतना ही नहीं, सैनेटाइज़र के चलते कई युवाओं में अल्कोहल पॉइज़निंग के गंभीर मामले तक भी देखे गए हैं। सैनेटाइज़र के प्रयोग की अधिकता पाचन को भी प्रभावित करती है और त्वचा को भी। फैथलेट्स नामक कैमिकल उन लोगों में पाचन संबंधी रोगों को बढ़ा देता है, जो पहले से ही इस प्रकार के रोगों से जूझ रहे होते हैं। इसका इस्तेमाल त्वचा पर रूखापन भी बढ़ाकर उसे खुरदुरी बना देता है।

बच्चों के लिए नहीं है सुरक्षित

कई लोग सेहत के प्रति सजग ही नहीं होते हैं, बल्कि यह उनमें एक जुनून की शक्ल ले लेता है। वे स्वयं तो बात-बात पर सैनेटाइज़र का  इस्तेमाल करते ही हैं, बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं, जबकि जानकारों का मानना है कि बच्चों के लिए सैनेटाइज़र का इस्तेमाल सुरक्षित नहीं है, क्योंकि यह उनकी प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता पर बुरा असर डालता है। यहां तक कि इसे ठीक से विकसित ही नहीं होने देता है। बच्चों में साफ़-सफ़ाई की आदत बनाए रखने के लिए उन्हें पानी व साबुन इस्तेमाल करने को ही कहें। उन्हें जहां तक हो सके, सैनेटाइज़र के इस्तेमाल से दूर ही रखें। अगर बच्चे ज़्यादा छोटे हुए तो वे बता भी नहीं पाएंगे कि वे इस कारण से किस समस्या का सामना कर रहे हैं।

अच्छे बैक्टीरिया हो सकते हैं समाप्त

हमारे शरीर में सभी बैक्टीरिया ख़राब ही नहीं होते हैं, बल्कि बहुत से बैक्टीरिया अच्छे भी होते हैं, जिन्हें हम गुड बैक्टीरिया कहते हैं। हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता इन्हीं के चलते विकसित होती है, जिससे हम कई तरह के संक्रमणों और रोगों से स्वाभाविक तौर पर जूझ पाते हैं। सैनेटाइज़र के बहुत ज़्यादा प्रयोग से जहां एक ओर ख़राब बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, वहीं ये गुड बैक्टीरिया भी समाप्त हो जाते हैं। इन गुड बैक्टीरिया को बायोमास के नाम से जाना जाता है। इनके समाप्त होने से हमारे शरीर में यह संतुलन बिगड़ जाता है।

हाथ को पूरी तरह साफ़ नहीं कर सकता

सैनेटाइज़र पानी और साबुन का विकल्प नहीं बन सकता, क्योंकि टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद हाथ हमेशा साफ़ पानी और साबुन से धोने ही ज़रूरी होते हैं। इसके अलावा अगर हाथ ज़्यादा गंदे हो गए हैं तो भी सैनेटाइज़र से साफ़ करने पर उनमें मौजूद धूल, मिट्टी व गंदगी पूरी तरह से नहीं निकल सकती है। यह काम भी सिर्फ़ पानी और साबुन ही कर सकता है।

सो हम समझ सकते हैं कि सैनेटाइज़र आज के वक़्त की एक अहम ज़रूरत बन चुका है। इसका इस्तेमाल ज़रूरी तो है, लेकिन उसमें हमें सावधानी भी बरतनी होगी, क्योंकि अति हर बात की बुरी होती है।