श्याम बेनेगल एक मुकम्मल स्कूल का नाम है- Yashpal Sharma
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श्याम बेनेगल एक मुकम्मल स्कूल का नाम है- Yashpal Sharma

फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल जी को अभिनेता यशपाल शर्मा किस रूप में याद कर रहे हैं, आइए जानें

श्याम बेनेगल एक मुकम्मल स्कूल का नाम है- Yashpal Sharma

Shyam Benegal  (श्याम बेनेगल) जी को मैं जब भी याद करता हूं तो मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट होती है और दिल में ढेर सारा सम्मान, क्योंकि उन्हें मैं अपना दोस्त, अपना गुरु, अपना मार्गदर्शक और पिता समान मानता हूं। 
गोविंद निहलानी के ज़रिये हुई पहली मुलाक़ात

Credit: livemint.com

मुझे आज भी याद पड़ता है कि मैं कब और कैसे मिला था श्याम बेनेगल जी से। तब तक मैं गोविंद निहलानी जी की हज़ार चौरासी की मां फिल्म कर चुका था। मोहन शेट्टी जी के घर पर एक पार्टी थी, जिसमें श्याम बेनेगल जी भी आए हुए थे। गोविंद जी ने मुझे उनसे मिलवाते हुए मेरी काफ़ी तारीफ़ भी कर दी कि यह बहुत ही अच्छा अभिनेता है। इस पर श्याम बेनेगल जी ने मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए देखा और कहा कि कभी आकर मिलो। उनकी मुस्कुराहट इतनी अपनी थी कि उस पहली ही मुलाकात में किसी भी तरह की औपचारिकता का कोई नामोनिशान तक नहीं था।

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बतौर अभिनेता मैं शुरू से ही था प्रभावित

Credit: filmfare.com

एक अभिनेता के तौर पर मैं श्याम बेनेगल जी से तो शुरू से ही प्रभावित था। तभी से जब से मैंने ये सपना देखना शुरू किया था कि एक दिन मैं भी अभिनय की दुनिया में अपना नाम और पहचान बनाऊंगा। इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि मैं जिन एक्टर्स के काम का कायल था, वे सभी श्याम बेनेगल की फिल्मों में नज़र आते थे, जैसेकि मोहन आगाशे, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी, अमरीश पुरी, ओम पुरी, नसीरूद्दीन शाह वग़ैरह। इस जमात के कलाकारों की मेरी एक लंबी लिस्ट है। ये सब मुझे इतना प्रभावित करते थे कि मैं इनकी फिल्में वीसीआर पर बार-बार देखा करता था। टीवी पर जब भी इनकी फिल्में आतीं तो मैं कोई मौका नहीं चूकता था। उस ज़माने में यूट्यूब और इंटरनेट जैसी सुविधाएं कहां थीं हमारे पास! उनके द्वारा निर्देशित भारत एक खोज हमेशा से मेरे दिल के बहुत क़रीब रहा है। 


रीडिंग ने ही करा दी कास्टिंग


फिल्म समर के ज़रिये मेरा और श्याम बेनेगल जी का एक नया रिश्ता बना, एक अभिनेता और एक निर्देशक का। जब फिल्म समर की कास्टिंग चल रही थी तो रवि तैमू ने मुझे उनसे मिलवाया। मैं जब सह्याद्री फिल्म्स के ऑफिस में, मुंबई सेंट्रल एवरेस्ट बिल्डिंग में दूसरे माले पर उनसे मिलने पहुंचा तो वहां स्क्रिप्ट की रीडिंग चल रही थी। राजेश्वरी सचदेव, उनके पिता इंद्रजीत सचदेव वग़ैरह वहां मौजूद थे। रीडिंग के बाद मेरी कास्टिंग फिल्म समर के लिए तय हो गई। ये बात मुझे राजेश्वरी सचदेव से बाद में पता चली कि श्याम बेनेगल जी ने मेरी रीडिंग के दौरान ही तय कर लिया था कि मैं इस फिल्म का हिस्सा बनने जा रहा हूं। उन्हें मेरी रीडिंग इतनी अच्छी लगी थी। मेरे लिए यह ख़ुशी और गौरव के पल थे।

पूरी फिल्म दिमाग़ में होती है उनके

Credit: Businessworld.in

श्याम बेनेगल जी की कितनी विशेषताएं मैं आपको गिनवाऊं। वे उन गिने-चुने निर्देशकों में से एक हैं, जो कि पूरी फिल्म अपने दिमाग़ में लेकर चलते हैं। कास्टिंग और रीडिंग के दौरान ही वे किरदार में अपने अभिनेता का और अभिनेता में अपने किरदार को देख चुके होते हैं, इसलिए जब एक बार फिल्म की शूटिंग शुरू हो जाती है तो वे कलाकार के काम में दख़लअंदाज़ी नहीं करते, न ही कलाकार पर उस रोल को थोपते हैं। इसकी बजाय वे कलाकार को पूरा मौक़ा देते हैं कि वह उस रोल में अपनी तरह से उतर सके। उस किरदार को अपने आप को भुलाते हुए जी सके। इसी वजह से उनकी फिल्मों में कलाकार को किरदार को जीवंत बनाने का मौका मिलता है। वैसे एक बात मैं आपको और बताना चाहूंगा कि श्याम बेनेगल की फिल्में जितनी गंभीर होती हैं, उनका सेंस ऑफ ह्यूमर उतना ही मज़ेदार है। वे सेट पर हंसते-हंसाते, हल्के-फुल्के माहौल में गंभीर से गंभीर काम करा लेने में महारत रखते हैं। कब वे लंबे-लंबे शॉट ले लेते, इसका पता भी नहीं चलता था। काम के दौरान माहौल भी ऐसा बन जाता था कि डबिंग भी उसी दौरान हो जाए, ताकि जिस वक़्त अभिनेता अपने किरदार में उतरा हुआ है, वही  असर बना रहे। 
 

थियेटर से है गहरा जुड़ाव

Credit: Indian Express

जब दिल्ली में फ़िरोज़शाह कोटला के क़िले में मेरा एक नाटक तुग़लक हुआ था, तब मुझे नहीं पता था कि श्याम जी चुपचाप मेरा यह नाटक देखने आए थे। वे ख़ामोशी से आए, नाटक देखा और चले गए। बाद में जब ये बात बताते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने मनोहर सिंह को भी इस नाटक में देखा है और तुम्हें भी। तुम्हें इस नाटक में देखना मेरे लिए एक बहुत ख़ुशी और बेहतरीन अनुभव की बात है तो मेरे लिए यह मौक़ा किसी उपलब्धि से कम नहीं था, क्योंकि मैं सोच रहा था कि तुग़लक नाटक करने के बाद मनोहर सिंह, ओम शिवपुरी जैसे अभिनेताओं की क़तार का हिस्सा बन गया हूं। थियेटर से श्याम बेनेगल जी का प्रेम जगज़ाहिर है। यही वजह है कि उनकी अनेक फिल्मों के कई किरदार फिल्मी दुनिया से नहीं, बल्कि थियेटर से आए हैं। फिल्मी दुनिया में श्याम बेनेगल जी का होना बॉलीवुड की एक उपलब्धि की तरह देखता हूं मैं। मेरे लिए श्याम बेनेगल एक मुकम्मल स्कूल का नाम है, और हमेशा रहेगा।

(सिटी स्पाइडी के लिए दामिनी यादव से हुई अभिनेता यशपाल शर्मा की बातचीत पर आधारित)