गुरुद्वारा बंगला साहिब : इंसानियत की इबादतगाह
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गुरुद्वारा बंगला साहिब : इंसानियत की इबादतगाह

एक दिन दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब में बिताया तो कैसी यादों के साथ लौटे

गुरुद्वारा बंगला साहिब : इंसानियत की इबादतगाह

अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे,
एक नूर ते सब जग उपजाया कौन भले को मंदे।

गुरुद्वारा बंगला साहब की सीढ़ियों पर कदम रखते हुए जब कानों में शबद के ये शब्द पड़े तो क़दम पल भर को ठिठके और फिर गुरुद्वारे के अंदर की ओर खिंचते चले गए। कितना मीठा और सच्चा है ये भाव और सच कहें तो इसी की ज़रूरत आज सबसे ज़्यादा है। जब पूरी दुनिया जात-पात, ऊंच-नीच और धर्म-संप्रदाय के ख़ानों में बंट जाए, उस वक़्त के सच्चे उपासना स्थल वही हो सकते हैं, जहां इबादत का मतलब इंसानियत की सेवा करना ही हो। गुरुद्वारों के सेवा-कारज और सिखों के सेवा-भाव के बारे में तो हमेशा से ही काफ़ी-कुछ सुनते और देखते आए हैं। ऐसे में जब कनॉट प्लेस में मौजूद रहते हुए बिल्कुल पास में स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब की कई ख़ासियतों के बारे में पता चला तो सोचा कि क्यों न वहां की एक झलक आप सबके साथ भी साझी की जाए। 

तो चलिए, आज हम आपको ले चलते हैं, दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब की दहलीज़ पर। यहां पर आपको आध्यात्मिकता का भरा-पूरा एहसास तो मिलेगा ही, साथ ही मिलेगा स्वाद और सेहत के सरोकारों का संगम भी।

इस तरह से पहुंचा जा सकता है यहां

दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब तक पहुंचने का रास्ता बहुत आसान है। वैसे तो आप यहां किसी भी ट्रांसपोर्ट से पहुंच सकते हैं। फिर भी अगर आप दिल्ली की लाइफ लाइन, यानी मैट्रो का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो यह मैट्रो के राजीव चौक और पटेल चौक रूट पर स्थित है। गोल डाकख़ाने के बिल्कुल सामने मौजूद गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के स्वर्ण मंदिर, यानी गोल्डन टैंपल के रूप में भी सराहा जाता है। इसके अलावा दिल्ली के हर कोने से यहां के लिए बस सर्विस भी अच्छी-ख़ासी है, जो कि नज़दीकी बस टर्मिनल, शिवाजी स्टेडियम तक आती हैं। शिवाजी स्टेडियम से भी गुरुद्वारा बंगला साहिब की दूरी पैदल आने भर की है। मैट्रो स्टेशन से गुरुद्वारा तक के लिए इ-रिक्शा भी आसानी से मिल जाते हैं और इनमें से कई इ-रिक्शा तो गुरुद्वारे तक के सेवा-कारज के मकसद से चलाए जाते हैं, लेकिन मैंने तय किया कि मैं राजीव चौक मैट्रो स्टेशन से गुरुद्वारा बंगला साहिब तक पैदल ही जाऊंगी, ताकि कनॉट प्लेस की थोड़ी सी झलक का भी लुत्फ़ लिया जा सके।

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मानवता की सेवा को ही बनाया मकसद

गुरुद्वारों में दाख़िल होने के लिए जब आप अपने जूते उतारते हैं और वापसी में जब उन्हें वापस पाते हैं तो एक सुखद आश्चर्य से भर उठते हैं। यदि आपके जूतों पर पॉलिश नहीं है या उन पर धूल या मिट्टी लगी हुई है तो जूता-स्थल पर ही अंदर कई लोग सेवा-कारज के लिए बैठे होते हैं, वे तुरंत आपके जूते-चप्पल चमकाने में लग जाते हैं। इस काम को गुरुद्वारे आने वाले लोग स्वेच्छा से करते हैं। कई बार तो बड़े सूटेड-बूटेड और रुतबेदार लोगों को जूते पॉलिश करते हुए देखना हम जैसे आम लोगों को हैरानी से भर देता है, लेकिन पूछने पर यहां पिछले कई दशकों से नियमित रूप से आने वाले एक श्रद्धालु परमिंदर सिंह बॉबी से पता चला कि ऐसा करने के पीछे न केवल मानवता की सेवा का भाव है, बल्कि एक सोच यह भी काम करती है कि इंसान को कभी भी मेहनत और ईमानदारी से किए गए किसी भी काम को कमतर नहीं आंकना चाहिए। साथ ही यह इंसान में कभी भी अहम का बोध नहीं आने देता है, इसलिए जब कई लोगों को ऐसा लगता है कि उनमें अहम, यानी कि ईगो बढ़ने लगी है या वे अपने किसी कार्य पर पश्चाताप करना चाहते हैं तो यहां गुरुद्वारे में आकर इस तरह के अनेक सेवा-कारज में लग जाते हैं। सच कहूं तो इस बात को जानने के बाद जब मैंने अपने जूते उतारकर भाईजी (जूते लेकर निर्धारित स्थान पर रखने वाले व्यक्ति तथा अन्य सेवादारों को यहां भाईजी ही कहा जाता है) को सौंपे तो मन उनके इस भाव के पीछे श्रद्धा से झुकता गया। फिर जब मैंने गुरुद्वारे में दाख़िल होने के लिए अपने पांव उस जगह पर रखे, जहां पानी की नन्ही-नन्ही फुहारें मेरे पांव धो रही थीं तो लग रहा था कि ये ठंडक मन के भीतर तक उतरती जा रही है और अहंकार की कालिमा कुछ घट रही है।

साफ़-सफ़ाई पर जाती है पहली नज़र

गुरुद्वारा बंगला साहिब में दाख़िल होते ही जो अगली बात ध्यान आकर्षित करती है, वह है यहां की साफ़-सफ़ाई की ऊंचे दर्जे की व्यवस्था। ये बात ग़ौरतलब है कि हर रोज़ हज़ारों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं, जो कि किसी परब या विशेष अवसर पर लाखों तक पहुंच जाते हैं, उसके बावजूद यहां के चमचमाते फ़र्श से लेकर किचेन और बाथरूम, कोने-कोने तक साफ़-सफ़ाई के लिहाज़ से जो इंतज़ाम किए गए हैं, वह हैरत में डाल देते हैं कि इतने लोगों की मौजूदगी में इस स्वच्छता को बनाए रखना अपने-आप में कितनी बड़ी चुनौती है। कहीं पर भी, किसी भी प्रकार की गंदगी, धूल, मिट्टी या कूड़े का नामोनिशान तक नहीं है। यहां तक कि जब आप गुरुद्वारे के भीतर से दर्शन करने के बाद बाहर आकर प्रसाद लेते हैं तो जिस जगह पर कड़ा-प्रसाद वितरित होता है, उस जगह पर आपको कई तौलिए टंगे हुए तक मिल जाएंगे, ताकि आप प्रसाद खाने के बाद अपने हाथ साफ़ कर सकें और प्रसाद की चिकनाई इधर-उधर न पोछें। 

लंगर में बनता है रोज़ाना लगभग तीस हज़ार लोगों का भोजन

फिर मैं मिली गुरुद्वारे के लंगर की व्यवस्था संभाल रहे भाईजी श्री गुरबचन सिंह जी से। उनसे बात करने पर पता चला कि गुरुद्वारा बंगला साहिब के इस लंगर में रोज़ाना पच्चीस से तीस हज़ार लोगों के भोजन की व्यवस्था की जाती है, जो कि सप्ताह के अंतिम दिनों में पचास से साठ हज़ार तक पहुंच जाती है। फिर जब गुरुपरब या कोई और विशेष दिन अथवा आयोजन होता है तो बहुत आसानी से यह संख्या लाखों के पार हो जाती है। इस बात का साक्षी तो पूरा दिल्ली शहर है कि जब कोरोना-काल के दौरान हज़ारों लोगों के सामने रोटी का संकट मुंह बाए खड़ा था तो गुरुद्वारा बंगला साहिब ने लगभग एक से दो लाख लोगों के भोजन की व्यवस्था रोज़ाना की है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए लंगर, यानी भोजन बनाना भी अपने-आप में बहुत बड़ी चुनौती की बात है, लेकिन मेरी हैरानी को उस समय थोड़ा विराम मिला, जब मैंने वहां के किचेन में बड़ी-बड़ी, विशाल, आधुनिक मशीनें देखीं, जो एक साथ सैकड़ों-हज़ारों लोगों के लिए दाल-सब्ज़ी या रोटी बना सकती हैं। सैकड़ों लोगों की रोटियों का आटा इन्हीं मशीनों में एक साथ गूंदा जा सकता है। यहां भी वही बात मेरा दिल लुभा गई कि हज़ारों लोगों के खाने की व्यवस्था हो रही है, लेकिन किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या साफ़-सफ़ाई के अभाव का दूर-दूर तक कोई नामोनिशान तक नहीं है। सब-कुछ साफ़-सुथरा चमचमाता हुआ, फ़र्श से लेकर बर्तन तक, मशीनों से लेकर सेवादार और आस-पास का सारा परिवेश तक। 

नाममात्र के दामों पर होते हैं महंगे टेस्ट और एक्सरे तक

गुरुद्वारा बंगला साहिब में प्रदान की जा रही चिकित्सकीय सुविधाएं इस जगह की अनेक विशेषताओं में से एक हैं। यहां कोई भी ज़रूरतमंद व्यक्ति नाममात्र के शुल्क पर एक्सरे से लेकर सीटी स्कैन और एमआरआई वग़ैरह जैसी स्वास्थ्य जांच करवा सकता है। साथ ही यहां अनेक रोगों की दवाएं भी इतने कम दामों में उपलब्ध हैं कि कोई भी हैरानी में पड़ जाए। इन जांच और दवाओं का मूल्य बाज़ार के मुकाबले बेहद कम है, जिसका लाभ कोई भी ज़रूरतमंद ले सकता है, जैसेकि- पचास रुपये से लेकर बारह सौ रुपये तक। इसका कारण बताते हुए गुरबचन सिंह जी कहते हैं कि असल में भूखा और बीमार इंसान अंदर से इतना टूटा हुआ और मजबूर होता है कि अगर इन्हीं दो ज़रूरतों को पूरा कर दिया जाए तो भी दुनिया से दुख और कई अपराध काफ़ी हद तक कम हो जाएंगे। गुरुद्वारे में गूंजती जिस गुरुबानी का ज़िक्र हमने इस लेख की शुरुआत में किया था, उसी का हवाला देते हुए परमिंदर सिंह बॉबी जी कहते हैं कि अगर परमात्मा का रूप देखना है तो दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, वह हर चेहरे में दिख जाएगा, क्योंकि वह सबमें है। यही वजह है कि गुरुद्वारा बंगला साहिब में मिल रही इन सभी सेवाओं का लाभ कोई भी ज़रूरतमंद या श्रद्धालु व्यक्ति उठा सकता है, चाहे वह लंगर हो, दवाएं हों या फिर मेडिकल जांच वग़ैरह ही क्यों न हो। यह सभी सेवाएं मनुष्य देखकर की जाती है, जाति-धर्म देखकर नहीं। यहां किसी का भी प्रवेश वर्जित नहीं है।

क़ुदरत का नूर ही तो है सबमें

Credits: HT

अब मैं गुरुद्वारा बंगला साहिब का चप्पा-चप्पा देख चुकी थी। मानवता की सेवा की ऐसी परिभाषा देखकर अब मन धीरे-धीरे ऐसी अवस्था में पहुंच रहा था, जहां अशांति कम और शांति ज़्यादा महसूस हो रही थी। गुरुद्वारा बंगला साहिब के पवित्र सरोवर के किनारे पर बैठे हुए मैं सोच रही थी कि क्या मैं इस जगह के बारे में कुछ और जानना चाहती हूं, जैसेकि यहां का इतिहास वग़ैरह तो महसूस हुआ कि इतिहास तो सभी स्थानों के प्रभावी मिल जाते हैं, लेकिन असल अहमियत होती है वर्तमान के कार्यों की। हमने कल क्या किया, इससे ज़्यादा मायने ये रखता है कि हम आज क्या कर रहे हैं। अब तक मन में बहुत सारे सवालों की जगह, बहुत सारे जवाबों ने ले ली थी, समस्याएं कम नज़र आ रही थीं और समाधान ज़्यादा महसूस हो रहे थे। अपने समाज और व्यवस्था से शिकायत करने की बजाय लग रहा है कि मैं अपने समाज के लिए किस रूप में और क्या कर सकती हूं। अपने होने की उपयोगिता हर रूप में महसूस हो रही थी, क्योंकि गुरुद्वारा बंगला साहिब के रूप में मैंने आज मानवता के एक उपासना स्थल को देखा था, महसूस किया था। सो मुस्कुराहट चेहरे पर भी थी और मन में भी। 
जानते हैं मेरी इस मुस्कुराहट को और गहरा करने का काम किस चीज़ ने किया?

मैंने सुना हुआ था कि गुरुद्वारे के बाहर मौजूद खाने-पीने के सामान की जो दुकानें मौजूद हैं, उनके ज़ायक़े का कोई जवाब नहीं तो अपने आज के इस सफ़र में मैं इस मोह-माया से भी मेहरूम नहीं रहना चाहती थी और मेरे क़दम बढ़ चले गुरुद्वारे की जयसिंह रोड वाली साइड के पकौड़ा-कॉर्नर तक। फिर वहां का जायज़ा लेने और ज़ायक़ा चखने के बाद मैं वापस लौटी बाबा खड़ग सिंह मार्ग की ओर, ताकि वापस राजीव चौक की तरफ़ लौट सकूं तो जानते हैं किस बात पर नज़र गई? 

गुरद्वारा बंगला साहिब के बाहर गोल डाकख़ाने के सामने खड़े होकर देखा तो सामने चर्च था, उसके थोड़ा आगे कनॉट प्लेस का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर और उसके सामने एक बहुत पुरानी मस्जिद स्थित है। साथ ही भीड़ के भीड़ लोगों का सैलाब।

और मैं सोच रही थी कि जिस पल में गुरुद्वारे के शबद, मंदिर की आरती के बोल, मस्जिद की अज़ान और चर्च के घड़ियाल एक साथ गूंज उठते होंगे, तब ये भीड़ भी परमात्मा के अलग-अलग रूपों में बदल जाती होगी और ये पूरा समाज बन जाता होगा एक ऐसी इबादतगाह, जहां सब आराध्य हैं और सभी आराधक...