वह सीख, जो हार को बदल दे जीत में
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वह सीख, जो हार को बदल दे जीत में

किन ग़लतियों से कड़ी मेहनत के बावजूद कामयाबी दूर ही रहती है, आइए जानें।

वह सीख, जो हार को बदल दे जीत में

महान वैज्ञानिक और हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि सपने वे नहीं होते, जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि वे होते हैं, जो हमें सोने नहीं देते हैं। बात सच भी है, यदि ज़िंदगी सिर्फ़ सपनों में ही बसर हो सकती तो हम सभी सिर्फ़ सोते ही रहते, बल्कि शायद क़ुदरत ने इस दुनिया को ही ऐसा बनाया होता, पर हर रात के बाद सुबह होती है, जो हमें अपने सपनों को सच करने का मौक़ा देती है। हर सुबह हम जागते हैं और जागकर उठ खड़े होते हैं उस दिन की चुनौतियों का सामना करने के लिए और हर उस रुकावट को दूर करने के लिए, जो हमें हमारे सपनों से दूर करती है, हमारी ख़्वाहिशों के पूरा होने के रास्ते में आती है। हम कड़ी से कड़ी मेहनत करते हैं। फिर क्या वजह है कि अक्सर बहुत से लोग बहुत काम करने के बावजूद, बहुत कड़ी मेहनत करने के बावजूद अपने सपनों को सच नहीं कर पाते हैं और कामयाबी उनसे बार-बार दूर भाग जाती है।

इस बात का जवाब देने के लिए मैं आपको एक बहुत छोटी सी कहानी सुनाना चाहूंगी, जो कि अपने अर्थों में बहुत बड़ी है। इसे अभी हाल ही में मैंने कहीं पढ़ा था और इसके असर को महसूस किया था। एक जंगल में कुछ पेड़ काटे जाने थे तो कॉन्ट्रेक्टर ने एक आदमी को इस काम के लिए हायर किया। वह आदमी नौजवान था, हट्टा-कट्टा और मज़बूत कद-काठी का था और उसे देखकर लग रहा था कि ये तो कुछ ही देर में पेड़ काटने का काम पूरा कर लेगा। शाम को जब कॉन्ट्रेक्टर काम की इंसपेक्शन करने के लिए जंगल में आया तो देखा कि पूरे दिन में बस दो-तीन पेड़ ही कटे हुए हैं। अगले दिन उसने दो लोगों को इस काम में लगा दिया कि काम जल्दी पूरा हो जाएगा। यह दूसरा आदमी पहले वाले से भी ज़्यादा हट्टा-कट्टा था। फिर शाम को जब कॉन्ट्रेक्टर काम का मुआयना करने के लिए जंगल में आया तो उसने देखा कि उन  दोनों लोगों ने मिलकर भी सिर्फ़ चार-पांच  पेड़ ही काटे हैं। कॉन्ट्रेक्टर को बड़ी निराशा हुई। साथ ही उसे इस बात की चिंता भी सताने लगी कि अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो काम समय पर कैसे पूरा हो पाएगा।

बहरहाल, उसने चिंता में एक एड निकाला कि उसे इस काम के लिए किसी बेहद काबिल आदमी की ज़रूरत है। उस एड को पढ़कर एक आदमी उस कॉन्ट्रेक्टर के ऑफिस में आया, लेकिन उस आदमी को देखकर कॉन्ट्रेक्टर को बड़ी निराशा हुई, क्योंकि यह आदमी मामूली कद-काठी का साधारण सा अधेड़ उम्र का था। कॉन्ट्रेक्टर को लगा कि जिस काम को दो-दो हट्टे-कट्टे आदमी मिलकर भी ठीक से पूरा नहीं कर पा रहे हैं, उसे यह मामूली सा दिखता आदमी कैसे पूरा कर पाएगा, लेकिन अब तक काफ़ी समय गुज़र चुका था और पेड़ काटने का काम पूरा करने के लिए बहुत ही कम वक़्त बचा था। कोई च्वॉइस ही नहीं थी।

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ख़ैर, उसने इस अधेड़ उम्र के आदमी को भी काम पर रख लिया। फिर जब वह हमेशा की तरह काम का जायज़ा लेने के लिए शाम को जंगल में गया तो वहां का हाल देखकर हैरत में पड़ गया। जहां एक तरफ़ पहले वाले दोनों हट्टे-कट्टे आदमियों ने मिलकर चार-पांच पेड़ ही काटे थे, वहीं उस दूसरे आदमी ने अकेले दस-बारह पेड़ काटकर ढेर लगा रखा था। कॉन्ट्रेक्टर तो हैरानी से कभी उस आदमी को देखे और कभी उसकी मामूली लगती कद-काठी को। आख़िर जब उससे नहीं रहा गया तो उसने पहले तो पहले वाले दोनों आदमियों को डांटना शुरू कर दिया कि वे कामचोर हैं और पूरी ईमानदारी से मेहनत नहीं करते, इसीलिए एक आदमी ने इतने पेड़ काट दिए, जितने वे दोनों मिलकर भी नहीं काट पाए। इस पर उस नए आदमी ने कहा कि नहीं, इसमें इन दोनों की ग़लती नहीं है। इन्होंने भी लगातार पूरे दिन कड़ी मेहनत से काम किया था। सिर्फ़ लंच टाइम में थोड़ी से देर के लिए रुके थे और लंच करने के बाद फिर से काम शुरू कर दिया था। इन्होंने बस कुछ बेसिक बातों का ख़याल नहीं रखा था, इसी वजह से कड़ी मेहनत करके भी ये ज़्यादा कामयाबी हासिल नहीं कर पाए, जबकि मैंने अपना काम आराम से किया। लंच करने के बाद थोड़ी देर सुस्ताया भी।

अब उस कॉन्ट्रेक्टर और उन दोनों आदमियों की तरह आप भी ये सोच रहे होंगे कि उस आदमी ने ऐसा क्या किया कि वह देखने में भी कोई बहुत ज़्यादा मज़बूत नहीं है, लंच भी उसने आराम से इंज्वॉय करते हुए किया, उसके बाद आराम भी किया। इन सबके बावजूद उसका काम औरों से बेहतर और ज़्यादा था। तो इसका राज़ यह है कि पहले वाले दोनों लोग अपनी उसी कुल्हाड़ी को लेकर सुबह से शाम तक लगे रहते, जो वे सुबह अपने साथ लेकर आते थे, जबकि ये अधेड़ आदमी हर पेड़ काटने के बाद थोड़ा पानी लगाकर अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज़ करता, उसके बाद ही दूसरा पेड़ काटना शुरू करता। दूसरा पेड़ काटने के बाद वह फिर से ऐसा ही करता, पानी लगाकर धार तेज़ करता और अगला पेड़ काटता। फिर लंच टाइम तक वह थक जाता तो खाना खाकर थोड़ी देर सुस्ताकर तरोताज़ा हो जाता, ताकि वह फिर पूरी ताक़त से अपने काम में जुट सके, न कि थका-थका रहते हुए, आधे मन और आधी ताकत से।

ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है कि वे लोग, जो अपने सपनों को पूरा करने से चूक जाते हैं या कामयाबी बार-बार उनसे दूर चली जाती है और वे कड़ी मेहनत के बावजूद ज़िंदगी में मनचाही जगह पर नहीं पहुंच पाते हैं, उसका कारण यही होता है कि वे अपनी कुल्हाड़ी को समय-समय पर धार नहीं देते और उसी कुल्हाड़ी से काम में जुटे होते हैं, जो उन्होंने शुरुआत में उठाई थी। यानी कहने का मतलब ये है कि हमें कोई भी काम इसलिए मिलता है कि उसे करने के लिए काबिलियत तो हमारे  पास होती है, यानी ज़रूरी शिक्षा-दीक्षा, डिग्री, टेक्नीकल स्किल्स वग़ैरह। और ये बात उन सब पर लागू होती है, जो भी किसी काम में हमारे सहयोगी होते हैं, लेकिन जो लोग कामयाब होते हैं, उनकी ख़ासियत समय-समय पर अपनी कुल्हाड़ी, यानी स्किल्स को धार देते रहना ही होता है, यानी वे अपनी जानकारी को हमेशा बढ़ाने के प्रयास में लगे रहते हैं, अपने काम से जुड़ी तकनीक के बदलते स्वरूप को समझते रहते हैं। यहां तक कि वे हर पल कुछ नया सीखने के लिए सिर्फ़ किताबों और तकनीकी ज्ञान पर ही सीमित नहीं रहते हैं, बल्कि अपने आस-पास के क्राउड से, लोगों से, जब भी, जहां भी उन्हें मौका मिलता है, वे कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं।

साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि अगर काम बोझ बनने लगे तो थकाने लगता है, बोझिल लगने लगता है, इसलिए जब इस तरह की थकान महसूस होने लगे तो एक ब्रेक तो बनता है। इस ब्रेक में थोड़ा सुस्ताकर जब आप नए और तरोताज़ा दिलोदिमाग़ से अपने काम में जुटेंगे तो उसी काम को इतना बेहतर ढंग से करेंगे कि फिर कामयाबी भी आपसे ज़्यादा दूर नहीं रह पाएगी और आपके सपने आपकी आंखों से उतरकर ज़िंदगी में समा जाएंगे।

तो देखा आपने इस छोटी सी कहानी की बड़ी सी ताकत कि क्यों कुछ लोगों की कामयाबी पर न तो उम्र असर डालती है और वक्त।