बसंती-बसंती हुई हैं हवाएं!
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बसंती-बसंती हुई हैं हवाएं!

क्या कहते हैं जाने-माने संगीतकार बसंत पंचमी के बारे में, आइए जानें।

बसंती-बसंती हुई हैं हवाएं!

शरद ऋतु की सर्द हवाओं के विदा लेने का समय है बसंत पंचमी। हवाओं में नए फूलों की भीनी-भीनी ख़ुशबू घुल-मिल जाती है। पीले पत्तों की जगह आती नई कोंपलें जीवन में भी नई ऊर्जा, नए उत्साह, नई उम्मीद की आमद की सूचक होती हैं। भारतीय परंपराओं में हमेशा से ही इस दिन को विशेष महत्त्व मिलता रहा है। बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती की पूजा भी होती है, इसलिए इस दिन का महत्त्व संगीत की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए और भी बढ़ जाता है। सो इस बार हमने बात की ऐसे ही कुछ चर्चित व्यक्तित्वों से, जो संगीत की दुनिया से अपना गहरा जुड़ाव तो रखते ही हैं, इसी संगीत की बदौलत बनी पहचान से ज़माने ने भी उन्हें अपने प्यार और सम्मान से नवाज़ा है। तो चलिए, जानते हैं कि इन संगीतकारों के जीवन में क्या है महत्त्व बसंत पंचमी का और किस तरह से ये अपने लिए बनाते हैं इस दिन को यादगार।

1.    उस्ताद फ़ैयाज़ वसीफ़ुद्दीन डागर, शास्त्रीय संगीत गायक, ध्रुपद शैली

मेरे लिए तो वसंत पंचमी का महत्त्व हमेशा से ही बहुत अधिक रहा है, क्योंकि शरद ऋतु की विदा की सूचक होती है वसंत पंचमी। इस समय पर वातावरण में नए-नए फूल खिलने लगते हैं, प्रकृति एक भीनी-भीनी ख़ुशबू से भर उठती है और मैं महसूस करता हूं कि वह ख़ुशबू मेरी आत्मा तक उतर गई है। इस दिन हम मां सरस्वती की पूजा भी हमेशा से करते आए हैं। अब अपने शागिर्दों के साथ मैं ख़ास तौर पर यह पूजा करता हूं। उनके साथ मिलकर वसंत पंचमी के लिए बनाई गई ख़ास बंदिशें गाता हूं, उन्हें नई-नई बंदिशें सिखाता हूं इस मौक़े पर। इसके अलावा अक्सर मैं हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया साहब की दरगाह पर जाकर भी अक़ीदत पेश करता हूं वसंत पंचमी के मौके पर। कोविड से पहले तो सरकार भी इस मौक़े पर कई बड़े आयोजन करती थी, लेकिन कोविड के बाद थोड़ा फ़र्क आया है। फिर भी वसंत पंचमी की रुत सिखाती है कि जाड़ा चाहे कितना भी कड़ा हो जीवन में, मगर उसके बाद वसंत के फूल जीवन को एक नई ताज़गी और भीनी-भीनी ख़ुशबू से भर देते हैं।

2.    मधुमिता राय, शास्त्रीय संगीत गायिका

बसंत पंचमी से जुड़ी ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो अब समय के साथ भुलाई जा रही हैं और जिनके बारे में अब कम ही लोग जानते हैं, जैसेकि गुप्त नवरात्रि, जो कि इन दिनों चल रही होती है, उसी की पंचमी होती है बसंत पंचमी। इस दिन हम विद्यादायिनी मां सरस्वती की पूजा करते हैं। बचपन से ही इस दिन पीली साड़ी पहनते आए हैं। इस दिन अपने अपने वाद्य यंत्रों, अपनी किताबों, अपनी लेखनी की विशेष रूप से पूजा करते हैं, अर्चन करते हैं। पीली चीज़े, जैसेकि  पीले चावल, पीली मिठाई वग़ैरह ही खाते हैं। ख़ासतौर पर हम मौसम के पहले बड़े वाले बेर आज ही के दिन से खाते हैं, उससे पहले नहीं। बतौर संगीतकार मेरे लिए इस दिन का महत्त्व इसलिए भी बहुत है कि बसंत पंचमी के दिन ही होरी गाई जाने की शुरुआत होती है, जो कि फाग, यानी होली वाले दिन तक चलती है। राग सिंदूरा काफ़ी में ठुमरी, दादरा गाना शुरू करते थे और होली के दिन तक गाते हैं, क्योंकि होली का अगला दिन चैत्र का महीना पड़ जाता है। इस समय से मौसम का रंग बदलता है और मौसम के साथ हमारा रंग भी बदलता है। गांवों में तो आज भी इस दिन से ही होली के दिन तक खूब होरी गाई जाती है। लोग मिलते-जुलते हैं। बसंत पंचमी के रंग से आध्यात्म के, सूफ़ियों के, पवित्रता के और भक्ति के रंग भी जुड़ जाते हैं, जोकि हमारे संगीत में भी ख़ूब जमकर नज़र आते हैं।

3.    संजीव झा- शास्त्रीय संगीत गायक

ऋतुओं का महत्त्व जीवन के प्रत्येक काल-खंड में बदलता है। अगर मैं वसंत पंचमी की ही बात करूं तो बचपन में यह सिर्फ़ छुट्टी का दिन होता था, जो कि किशोरावस्था में बदलकर पूजन से जुड़ गया। फिर जब मैंने गायन को अपना जीवन अर्पित किया तो वसंत पंचमी के दिन का अर्थ मेरे लिए गुरु पूजा, वाद्य यंत्रों की पूजा, सरस्वती वंदना आदि में बदल गया। फिर जैसे-जैसे परिपक्वता बढ़ी, मन में यह प्रश्न उठने लगा कि सरस्वती पूजा या वसंत पंचमी की आराधना साल में केवल एक ही दिन क्यों। आज मैं इस प्रश्न का अर्थ समझ चुका हूं तो मेरे लिए इस प्रश्न का उत्तर भी बदल गया है। अब मेरे लिए वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा एक अनुशासन, एक जीवन भर चलने वाली आराधना का नाम है, जिसकी ज़रूरत हर रोज़ के रियाज़, अभ्यास, अनुशासन से जुड़ी है। वसंत पंचमी पर्याय है, जीवन के विपरीत काल में भी आशा और उम्मीद से जुड़े रहने का। जिसने एक बार भी वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन को सही अर्थों में समझ लिया, उसके अनुशासन को समझ लिया, उसकी आराधना के उद्देश्य को समझ लिया, उसके लिए फिर हर दिन वसंत पंचमी बन जाता है। यही वजह है कि मेरे जीवन में वसंत पंचमी अब हमेशा के लिए आकर ठहर चुकी है, अनुशासन के रूप में। यह सिर्फ़ एक दिन तक सीमित नहीं रही मेरे लिए अब।

4.     प्रो. सुनीरा कासलीवाल, सितार वादक

अगर मैं अपनी बात करूं तो वसंत पंचमी का दिन मेरे लिए बतौर संगीतकार भी और व्यक्तिगत रूप से भी बहुत विशेष अर्थ रखता है, क्योंकि मेरा विवाह भी इसी दिन हुआ था। वसंत पंचमी को तो प्रकृति ने ही एक इतना बड़ा मुहुर्त बना दिया है कि इस दिन किसी भी शुभकार्य की शुरुआत के लिए अलग से किसी मुहूर्त की ज़रूरत नहीं पड़ती। सबसे बड़ी बात की वसंत पंचमी का महत्व केवल संगीतकारों या अध्ययन से जुड़े लोगों के लिए ही नहीं है, बल्कि किसानों के लिए भी बहुत होता है, क्योंकि यह समय नई फसल के फलने-फूलने, आने का होता है तो किसान भी इस खुशी का भरपूर आनंद लेते हैं। एक संगीतकार के रूप में मैं हमेशा इस दिन व्यक्तिगत रूप से तो सरस्वती पूजा करती ही हूं, साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत विभाग से लगभग 36 सालों तक जुड़े रहते हुए भी मैंने इस दिन को बहुत रचनात्मक बनाने का प्रयास हमेशा किया है। इस दिन हम पीले वस्त्र पहनते हैं, पीले फूलों से मां सरस्वती की पूजा करते हैं, भोग में पीली मिठाई और खिचड़ी चढ़ाते हैं, मां सरस्वती की वंदना गाई जाती है, सभी कलाकार और विभाग के संगीतकार अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। पौष माह की पंचमी का तो महत्त्व ही अलग है, क्योंकि इस समय में पिछली सर्द हवाओं से, सर्दी से छुटकारा मिलता है, नए मौसम की बहार देखने को मिलती है, जो जीवन में नए अर्थ देती है। ख़ासतौर पर तो बंगाल में इस दिन का महत्त्व बहुत ही ज़्यादा है, क्योंकि  इस दिन घरेलू स्तर से लेकर सामुदायिक स्तर तक मां सरस्वती के पूजन और वसंत पंचमी के आयोजन बड़े विशाल पैमाने पर होता है। 

5.     तोची रैना, बॉलीवुड सिंगर

मैं आज भले ही बॉलीवुड सिंगर की पहचान रखता हूं, लेकिन मेरा पूरा जीवन शास्त्रीय और सूफ़ी संगीत को ही समर्पित है। मेरे जीवन का तो आधार ही शास्त्रीय संगीत है, इसलिए मेरे लिए तो मां सरस्वती पूजा के दिन से बढ़कर कोई और दिन है ही नहीं। मेरे गुरुजी परम आदरणीय स्वर्गीय विनोद जी का तो मैं हमेशा ही ऋणी रहूंगा, जिन्होंने मेरे जीवन में सुरों को घोल दिया। उन्होंने ही मुझे इस दिन चिल्ला बांध कर साधना करना सिखाया था और तब से उनके बताए रास्ते पर चलते हुए मैंने न जाने कितने ही साल मां सरस्वती की पूजा वाले दिन चालीस-चालीस दिन के चिल्ला बांध कर बीस-बीस घंटे तक भूखे-प्यासे रहकर मां के चरणों में रहकर संगीत साधना की है, रियाज़ किया है। अब मां सरस्वती की  पूजा वसंत पंचमी पर होती है, इसलिए मेरे लिए तो हर दिन ही वसंत पंचमी है, क्योंकि मेरे जीवन का कोई भी दिन मां सरस्वती की आराधना करते हुए, सुरों का रियाज़ करते हुए ही शुरू होता है।

6.     अंजू, कत्थक डांसर

बसंत पंचमी का महत्त्व सिर्फ़ कलाकारों के लिए ही नहीं, सभी के लिए बहुत अधिक होता है। हां कलाकार इस दिन के साथ थोड़े ज़्यादा गहरे रूप में जुड़े होते हैं। बसंत पंचमी का पूरा दिन ही इतना पवित्र होता है कि कुछ भी नया शुरू करने के लिए इस दिन कोई भी समय चुना जा सकता है, अलग से किसी महत्त्व की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस दिन सुबह हम सबसे पहले मां सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, पीले कपड़े पहनते हैं, पीली चीज़ें खाते हैं। मैं एक डांसर हूं तो इस दिन मैं अपने घुंघरुओं की भी विशेष पूजा करती हूं। अपने गुरुजी से मिलने जाती हूं और उनसे मिले ज्ञान के लिए उनका आभार व्यक्त करती हूं। साथ ही बसंत पंचमी के बाद रियाज़ करना भी थोड़ा सरल हो जाता है, क्योंकि तेज़, ठिठुराती सर्दियां भी बीतने लगती हैं तो नया अनुशासन जीवन में आता है। कुछ जगहों पर तो यह अनुशासन इतने बड़े रूप में देखने को मिलता है कि लोग पूरे दिन-दिन भर रियाज़ करते हैं। साथ ही जो लोग कुछ नया सीखना चाहते हैं, उनके लिए भी यह एक बहुत पवित्र समय होता है। जीवन के हर रंग में नएपन लाने का नाम है बसंत पंचमी।