दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन की डोली लुभाती रहती है!
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दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन की डोली लुभाती रहती है!

अगर आप भी चाहते हैं कि आपकी शादी के दिन वरमाला हो या सेहरा, बेस्ट होना चाहिए तो आइए इस मार्केट में।

दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन की डोली लुभाती रहती है!

आजकल शादी-विवाह का सीज़न पूरे शबाब पर है और सभी चाहते हैं कि उनकी शादी से जुड़ी सारी चीज़ें बेस्ट हों, अब चाहे वह सेहरा या फिर वरमाला ही क्यों न हो। वैसे भी जहां वरमाला अपने-आप में इतनी ख़ास होती है कि जिस वक़्त ये रस्म अदा होती है, वह लम्हा जितना भावभीना होती है, उतनी ही उत्सुकता सबकी निगाहों में इस बात को लेकर भी होती है कि वर माला, यानी फूलों की वह बेहद ख़ास माला दिखने में कैसी होगी। यहां तक कि कई जगहों पर तो एक रिवाज यह भी देखने को मिलता है कि वरमाला की मालाएं कुछ समय तक सहेज कर रखी जाती हैं।

दूसरी तरफ़ यही बात सेहरे पर भी लागू होती है। बांका-सजीला लगता दूल्हा कैसा लग रहा है, जहां लोग इस बात को भी उत्सुकता से देखते हैं, वही दिलचस्पी इस बात में भी झलकती है कि दूल्हे ने सेहरा कैसा पहना है। बस तो फिर क्या है, वरमाला हो या फिर सेहरा, अगर आप भी चाहते हैं बेस्ट तो एक बार दिल्ली के गौरीशंकर मंदिर के ठीक सामने मौजूद फूल-बाज़ार पर नज़र डालना न भूल जाइएगा।

जी हां, दिल्ली में चांदनी चौक स्थित गौरीशंकर मंदिर के ठीक सामने फूलों की कई दुकानें मौजूद हैं, जिसे पहले फूल-बाज़ार के नाम से भी जाना जाता रहा है। यहां पर फूलों की सजावट की अनेक दुकानें मौजूद हैं। इनमें से कई दुकानें तो साल 1900 से भी पहले से मौजूद हैं। समय के साथ इन दुकानों में बैठने वाले दुकानदारों की पीढ़ियां भी बदली हैं और फूलों की सजावट के तौर-तरीके भी।

ऐसी ही एक दुकान के मालिक हैं प्रह्लाद जी। उनकी फूलों की दुकान यहां साल 1902 से हैं और वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम में लगे हैं। वे बताते हैं कि यहां पर तरह-तरह के फूलों की वरमालाएं, सेहरा, फूल मालाएं तो मिलते ही हैं, साथ ही फूलों की सजावट का भी ख़ास इंतज़ाम है।

प्रह्लाद जी इस बात पर भी रोशनी डालते हैं कि शादी सभी के लिए ज़िंदगी का एक बेहद ख़ास एहसास होता है और सभी चाहते हैं कि उनकी वरमाला सबसे अलग, सबसे जुदा और सबसे ख़ूबसूरत हो तो हम भी अपनी मालाओं में लोगों की पसंद, मौसम और बजट के हिसाब से बेहतर से बेहतर डिज़ाइन में स्टाइल में मालाएं बनाने की कोशिश करते हैं।

इस बात पर और ग़ौर किया जाना चाहिए कि जाना चाहिए कि वरमाला या सेहरे की क़ीमत भी मौसम, फूलों की क्वॉलिटी, वैरायटी, डिज़ाइन और क्रियेटिविटी पर निर्भर करती है। वरमाला के फूलों की कीमत भार के हिसाब से तय होती है और अगर आपके ज़ेहन में पहले से कोई ख़ास डिज़ाइन या स्टाइल है तो वैसी वरमाला या सेहरा भी यहां पर ख़ासतौर पर आप ही के लिए तैयार किए जा सकते हैं।

इसके अलावा हमें प्रह्लाद जी से एक और ख़ास बात पता चली, वह ये कि पहले तो दूल्हा भी फूलों से सजी बग्गी में आता थी और दूल्हन की डोलियां चलन में होती थीं तो फूलों से बग्घी या डोली को सजाना भी एक कला होती थी। सैकड़ों बग्घी और डोलियों की सजावट यहां से होकर गई है। फिर समय के साथ चलन बदला, अब दूल्हा भी ज़्यादातर बग्घी की बजाय कार में ही आना पसंद करता है और डोली की बजाय दुल्हन की विदाई कारों में ही होने लगी है। सो यहां इस बात का भी पूरा इंतज़ाम है कि जिस गाड़ी में दुल्हन की विदाई होने वाली हो, वह गाड़ी भी ऐसी सजी-धजी हो कि दुल्हन से कम न लगे। गाड़ियों पर फूलों की सजावट भी यहां ऐसी की जाती है कि आप बस देखते रह जाएं।

फिर भी चलन में अब कई पुराने तौर-तरीके फिर से नज़र आने लगे हैं तो बग्घी और डोली एक बार फिर से बदले रंग-ढंग में नज़र आने लगी है। भले ही समय और सुविधा को देखते हुए यह रस्म सीमित होकर सांकेतिक रूप में ही रह गई है, लेकिन शादी के मंडप से थोड़ी दूर पहले से दूल्हे बग्घी पर आने लगे हैं और दुल्हन को विवाह-मंडप में डोली में बिठा कर लाया जाने लगा है।

चाहे शादी को लेकर सोच बदली हो या शादी के तौर-तरीके, नहीं बदली है तो बात फूलों की। आज भी शादी की सजावट हो या वरमाला, सेहरा, बग्घी और डोली, बात भीने-भीने फूलों की न चले तो अधूरी ही लगती है। तो देर किस बात की, अगर आपके घर में होने जा रहा है यह मंगल कार्य तो पहुंच जाइए गौरीशंकर मंदिर के सामने वाले फूल बाज़ार में। यहां से सजे-निखरे फूलों की ख़ूशबू आपकी यादों में हमेशा के लिए बस जाएगी।