अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस पर एक कविता पुस्तकों के नाम
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अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस पर एक कविता पुस्तकों के नाम

इस बार 'वर्ल्ड बुक डे' के मौके पर पेश है, दामिनी यादव की कविता- 'किताब'

अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस पर एक कविता पुस्तकों के नाम

किताबें सिर्फ़ कोरे पन्नों पर लिखे कुछ शब्दों का ही नाम नहीं होता है, बल्कि ज़िंदगी के चाहे जिस भाव, जिस एहसास, जिस ख़ुशी या जिस रंगत का नाम लीजिए, किताबों में वह सब-कुछ मिलेगा, बल्कि कहना चाहिए कि ज़िंदगी में किताबों ज़रूर होनी चाहिए, क्योंकि किताबों में सही मायनों में ज़िंदगी होती है। सो इस बार 'वर्ल्ड बुक डे' के मौके पर पेश है, दामिनी यादव की कविता- किताब।

किताब

ज़िंदगी का चेहरा सी लगती है

हाथों में थमी किताब

जिसमें होता है कभी मेरे

तो कभी किसी और के एहसासात का बयान

भीड़ में भी तनहां बना देने के हुनर में

माहिर होते हैं अब लोग

लेकिन ख़ुदी के साथ ही ख़ुद का

परिचय करा देती है किताब

किताबों में नहीं होते हैं कोरे शब्द

नहीं होती सिर्फ़ बातें

होते हैं बहुत से जज़्बे

होते हैं बहुत तजुर्बात

कुछ पन्नों में ही समेट देती है इल्म का दरिया

कायनात को समेटे दुनिया होती है किताब

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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