जामा मस्ज़िद की दहलीज़ से छाती रमज़ान की रूहानियत!
Welcome To CitySpidey

Location

जामा मस्ज़िद की दहलीज़ से छाती रमज़ान की रूहानियत!

रमज़ान का महीना बस बीतने को ही है। ऐसे में इफ़्तार के वक़्त हम लेकर आए हैं आपको जामा मस्ज़िद

जामा मस्ज़िद की दहलीज़ से छाती रमज़ान की रूहानियत!

रमज़ान (Ramadan) का महीना अब बस बीतने को ही है और कुछ ही रोज़ की दूरी पर मौजूद है ईद। ईद, यानी देखा जाए तो रमज़ान के पूरे महीने आस्था, विश्वास, अनुशासन, पवित्रता और आत्मनियंत्रण से गुज़र कर पाया एक मुकाम। यूं तो ईद सभी के लिए मीठी ही होती है, लेकिन इसकी असल मिठास पर तो उन्हीं लोगों का सबसे पहला हक़ होता है, जो इस तपते मौसम की आज़माइश के बीच भी अपनी आस्था पर कायम रहते हुए रोज़े से गुज़रकर आए हैं। अब बात अगर रोज़े की है तो रमज़ान के महीने में हर शहर का अपना एक मिज़ाज होता है, लेकिन अगर आप दिल्ली में हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि इस मौके पर ख़ासतौर से जामा मस्ज़िद का ज़िक्र न हो। जामा मस्ज़िद सिर्फ़ विश्व की सबसे बड़ी मस्ज़िदों में से ही एक नहीं है, बल्कि इसके निर्माण के साथ ही इसमें भारतीय इतिहास का एक मज़बूत दस्तावेज़ भी समेट दिया गया है। रमज़ान के महीने में जब अभी हाल ही में हमने इफ़्तार के वक़्त जामा मस्ज़िद पर थोड़ा वक़्त बिताया और उसके बाद घूमे जामा मस्ज़िद से सटी गलियों में तो खाने के हम जैसे शौकीनों की तो मानो चांदी ही हो गई। हालांकि हम रोज़ेदार नहीं थे, लेकिन इस मौके पर जो रूहानी सुकून हमने महसूस किया, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। फिर भी खाने का ज़ायक़ा हम भले ही आपको न चखवा सकें, लेकिन इन ज़ायक़े से भरी गलियों का अता-पता ज़रूर दे सकते हैं। तो देर किस बात की, आइए चलते हैं, रमज़ान के मौके पर इफ़्तार रूहानियत महसूस करने और उसके बाद ज़ायक़े के सफ़र पर, जामा मस्ज़िद की गलियों में।

बेहद तपते से इस अप्रैल के महीने में रोज़े का एक दिन अपने अंजाम के पड़ाव पर है। सूरज भी इस बात का पता दे रहा है कि इफ़्तार का वक़्त अब बस होने ही वाला है।

दिल्ली में जो लोग ख़ासतौर पर जामा मस्ज़िद परिसर में ही अपना रोज़ा खोलने आए हैं, वे अब धीरे-धीरे इक्ट्ठा होना शुरू हो गए हैं। ये दिखते कुछ ही लोग धीरे-धीरे एक विशाल जन समुदाय में बदल जाएंगे। रोज़ेदारों का एक ऐसा जन समुदाय, जहां आस्था हिलोरें मारती है।

आकाश की लालिमा भी अब गहराने लगी है और पूरे दिन आग बरसाने के बाद सूरज भी अब थोड़ा ठंडा पड़ने लगा है। हो सकता है कि रोज़ेदारों की आस्था ने उसे नर्म पड़ने को मजबूर कर दिया हो।

काफ़ी रोज़ेदार ऐसे भी होते हैं, जो किसी कारण से इफ़्तार का इंतज़ाम नहीं कर पाए या जल्दबाज़ी में ही आ गए। ऐसे लोगों के लिए जामा मस्ज़िद की तरफ़ से भी रोज़ा-इफ़्तार का ख़ास तौर पर इंतज़ाम किया जाता है।

जामा मस्ज़िद परिसर रोज़ेदारों की भीड़ से भरता जा रहा है। कुछ ही देर में इस परिसर में पैर रखने तक की जगह मिलना मुश्किल हो जाएगा। रोज़ेदार भी तैयार हैं और कुछ ही देर में इफ़्तार का वक़्त भी बस होने ही वाला है। लोगों ने इफ़्तार के लिए अपनी-अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।

रोज़ा इफ़्तार तो हो चुका। अब चलिए, ज़ायक़े की तलाश में हम दाख़िल होते हैं, जामा मस्ज़िद से सटी गलियों में। यूं तो ये गलियां पूरे साल गुलज़ार रहती हैं, लेकिन रमज़ान के महीने में इनकी रौनक़ देखने लायक होती है।

रोज़ा-इफ़्तार हमेशा दुआ के बाद पानी और खजूर से किया जाता है। खजूर को तो वैसे भी सुन्नत कहा गया है और सेहत के नज़रिये से भी खजूर अनेक गुणों से भरा है। तो नज़ारा कीजिए बेहतरीन क्वॉलिटी के खजूरों का।

रोज़ के दौरान सुबह सहरी से लेकर शाम को मुंह मीठा करने तक और उसके बाद फिर ईद के दिन अपना और अपनों का मुंह मीठा करवाने के लिए भी फिरनी का सहारा ही लेना पड़ता है। जामा मस्ज़िद की इन गलियों में आप तलाश कर सकते हैं, बेहतरीन क्वॉलिटी की मज़ेदार फिरनी भी। क्या ख़याल है? ले ली जाए थोड़ी सी ईद के मद्देनज़र?

पूरे दिन रोज़ा रखने के बाद इफ़्तार तो कर लिया, लेकिन मज़े की बात तो यह है कि भूख के बावजूद तुरंत ही कुछ भारी खाने का मन नहीं करता। ऐसे में पहले गला मीठे-ठंडे शर्बत से तर किया जाए और साथ में ली जाए फ्रूट चाट और कुछ हल्के-फुल्के स्नैक्स।

शर्बत से गला तर करते हुए हम पहुंच गए हैं क़ुरैशी कबाब के सामने। यहां का ज़ायक़ा अपने-आप में बेमिसाल है। जब भी इन गलियों में आएं तो इस ज़ायक़े को चखे बिना मत जाइएगा।

जामा मस्ज़िद की गलियों में इन होटलों की क़तार देखकर ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहां खाने-पीने के शौकीनों की जन्नत बसती है। आप चाहे शुद्ध हर तरह के खाने के शौकीन हों या फिर शुद्ध शाकाहारी हों, ये गलियां, यहां मिलने वाले लज़ीज़ व्यंजन आपको निराश नहीं करेंगे।

चिकेन और फिश के प्वॉइंट तो आपको जामा मस्ज़िद की इन गलियों में कदम-कदम पर मिल जाएंगे। इनमें से कई दुकानें तो सालों पुरानी हैं। सो ज़ाहिर है कि उनके ज़ायक़ों में भी आपको विविधता चखने को मिलेगी।

रमज़ान के महीने में दिन भर थोड़ी फीकी सी लगती ये गलियां इफ्तार के बाद तो इतनी गुलज़ार हो जाती हैं कि आपको ये चुनना मुश्किल हो जाएगा कि कौन सा ज़ायक़ा अभी चखा जाए और कौन सा ज़ायक़ा चखने के लिए इन गलियों का रूख़ बार-बार किया जाए।

जामा मस्ज़िद की गलियों में आए हैं और करीम होटल की विज़िट के बिना लौट जाएं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। यूं तो अब करीम होटल की न सिर्फ़ दिल्ली में, बल्कि देश भर में कई शाखाएं हैं। फिर भी पुरानी दिल्ली की गलियों से अपना सफ़र शुरू करने वाले करीम होटल की यहां मौजूद शाखा पर मिलता ज़ायक़ा आपको बार-बार यहां आने के लिए मजबूर कर देगा। जो लोग करीम होटल को सिर्फ़ उसके नॉनवेज खाने के लिए ही जानते हैं, उन्हें हम बता दें कि यहां का शुद्ध शाकाहारी खाना भी आपको उतना ही मज़ेदार लगेगा।

तो ये थी एक छोटी सी सैर, जामा मस्ज़िद की दहलीज़ से होते हुए उसकी पेचोख़म और ज़ायक़ों से भरी गलियों की। वैसे तो यह एक बहुत ही छोटी सी झलक भर थी, लेकिन जब भी आप इस जगह पर जाएंगे तो आपको यहां तरह-तरह के खाने की विविधता, पुरानी दिल्ली की गंगा-जमुनी सांस्कृतिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द भी देखने को मिलेगा। साथ ही एक और बात जो आपका ध्यान खींचे बिना नहीं रह पाएगी, वह है यहां के होटलों के नाम और दुकानदारों का मुहब्बत से भरा लबो-लहजा।

तो फिर कब जा रहे हैं आप जामा मस्ज़िद की इन गलियों में ज़ायक़े की तलाश में?