आम इंसान के आक्रोश का नाम थे ओम पुरी!

By : Damini Yadav
Oct 18, 2021

ओम पुरी साहब की ज़िंदगी किसी ख़्वाब की ताबीर जैसी रही है, पर इसका एक और पहलू भी है। ओम पुरी एक ऐसे चमकते सितारे का नाम रहा है, जिसकी चमक उनके आस-पास फैले उस अंधेरे से पैदा हुई थी, जो उनके हालात और संघर्ष ने बनाए थे। कभी सड़क के किनारे चाय के जूठे बर्तन धोकर गुज़र-बसर करने से ज़िंदगी शुरू करने वाले ओम पुरी साहब ने शायद ये तो ख़ुद भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वे हॉलीवुड तक में भारतीय अभिनय का परचम लहराएंगे। आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनकी ज़िंदगी की कुछ बातें हम भी याद कर रहे हैं।

बचपन संघर्ष का दूसरा नाम था

18 अक्टूबर, 1950 को पंजाब के अंबाला शहर में जनमे ओम पुरी का बचपन संघर्ष का दूसरा नाम रहा। वे शुरू से ही बेहद जुझारू रहे थे। हालात चाहे कितने भी कड़े क्यों न हों, उन्होंने घुटने टेकना कभी नहीं सीखा। महज़ सात साल की उम्र में, जबकि उनकी उम्र के दूसरे बच्चे खेलों में मस्त रहते हैं, उन्होंने ज़िंदगी की बागडोर संभाल ली थी। चाय के जूठे कप धोए, कोयला बीना, जाने कितने ही छोटे-मोटे काम करके पेट भरा, मगर ज़िंदगी से हार नहीं मानी। शायद हालात का यही संघर्ष इस बात की वजह बना कि वे हमेशा ज़मीन से जुड़े रहे और कामयाबी का घमंड उन्हें छू तक नहीं गया।

अभिनय के शौक ने बदला ज़िंदगी का चेहरा

ओम पुरी को अभिनय का शौक काफ़ी कम उम्र में ही लग गया था। उन्होंने अभिनय की पारी की शुरुआत फिल्म ‘घासीराम कोतवाल’ से की थी। उन्होंने दिल्ली के ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ और पुणे के ‘फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया’ से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लिया था। उनका यह वक़्त भी संघर्ष का एक लंबा दौर रहा था। यहां तक कि तब कई लोगों ने उनके साधारण चेहरे-मोहरे को लेकर काफ़ी कटाक्ष भी किए थे, जो आगे चलकर उनके समकालीन बने। संघर्ष के इसी समय में नसीरूद्दीन शाह उनके बेहतरीन दोस्त बने, जो कि ख़ुद एक बेमिसाल अभिनेता हैं।

आक्रोश से खिली से लौटी बहार

ओम पुरी के करियर की पहली हिट फिल्म ‘आक्रोश’ थी। इसके बाद उन्होंने कभी पलटकर नहीं देखा। हालांकि वे फिल्मों में आम इंसान का चेहरा कहे जाते थे और आक्रोश, अर्धसत्य, सद्गति जैसी अनेक फिल्मों के ज़रिये उन्होंने इस बात को साबित भी किया था। फिर भी व्यावसायिक रूप से सफल फिल्मों और आर्थिक सुख-सुविधाएं जुटाने के लिए उन्होंने मसाला फिल्मों का सहारा भी लिया था, जैसेकि- डिस्को डांसर, सिंह इज़ किंग, हेरा-फेरी, भागमभाग, मालामाल वीकली वग़ैरह।

छोटे पर्दे पर नज़र आया बड़ा चेहरा

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फिल्मों में व्यावसायिक रूप से सफल रहने के बावजूद ओम पुरी साहब ने टेलीविज़न के छोटे परदे पर भी जमकर अपनी धाक जमाई थी। उन्होंने भारत एक खोज, तमस, कक्काजी कहिन सहित कई टीवी धारावाहिकों में भी अपने अभिनय से घर-घर में अपने प्रशंसक पैदा किए थे। उन्होंने बाल फिल्म ‘द जंगल बुक’ के लिए बघीरा के किरदार को भी अपनी आवाज़ दी थी।

बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफ़र

70 और 80 के दशक में भारतीय कला फिल्मों के सबसे चर्चित चेहरों में से एक रहे ओम पुरी सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म ‘सद्गति’ का भी प्रमुख हिस्सा रहे थे। हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने कई क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में भी की थीं और उनकी यह अभिनय-यात्रा बढ़ते-बढ़ते हॉलीवुड तक भी जा पहुंची, जहां उन्होंने अपने अभिनय का परचम इतने शानदार ढंग से निभाया कि साल 2004 में ब्रिटिश फिल्मों में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर’ की मानद उपाधि से नवाज़ा गया।

सम्मान का लंबा सिलसिला

ओम पुरी के हिस्से पुरस्कार और सम्मान की एक लंबी सौग़ात रही। फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से लेकर उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक ‘पद्मश्री’ तक से सम्मानित किया जा चुका था। कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी उनके हिस्से रहे।

संघर्ष से कभी पीछा नहीं छूटा

कामयाबी और संघर्ष का सिलसिला उनके जीवन में लगातार बना रहा। अपने व्यक्तिगत जीवन और विवादास्पद बयानों के चलते वे हमेशा चर्चाओं में बने रहते थे। कई बार इन्हीं के चलते उन्हें आलोचनाओं का भी जमकर सामना करना पड़ा, लेकिन बतौर अभिनेता उन्होंने हमेशा कामयाबी की ऊंचाइयों को छुआ। अपने अभिनय कौशल से उन्होंने जो जगह अपने प्रशंसकों के दिलों में बनाई है, उससे उन्हें कभी भी कोई नहीं हिला सकता।