Mere sapon ka darpan- Ek kavita

By : Shweta Kumari
Sep 13, 2022

एक रोज़ यूं ही चलते चलते एक दर्पण की ओर नज़र पड़ी,
नज़र पड़ते ही बड़ी झिलमिल सी एक मुस्कुराती आकृति दिखाई दी तो सोचा मुलाकात करती चलूं।


मेरे स्पर्श  के साथ, वह आकृति बिल्कुल उसी दर्पण में ठहर सी गई थी
मानो न जाने कब से मेरे इंतजार में बैठी हो,
मेरा ध्यान उस पर इस कदर ठहरा था, मानो उसके नैनो पर मेरा बड़ा लंबा सा पहरा था।

उसे देख होंठ मेरे खुद-ब-खुद मुस्कुराए, लगा एक बार तो पूछें कि कहां से हो आए?
मैं स्थिर अब भी वही खड़ी थी, यह मानकर कि जैसे वह दर्पण ही तुम तक जाने की कड़ी थी, इन सब में मैं ऐसी बेसुध सी पड़ी थी,
ना होश था ना ठिकाना कि किस ओर आगे है मुझको जाना।
चाहा तो बहुत तुझे साथ ले जाना पर दर्पण के इस ओर मेरी पूरी जिंदगी रुकी थी।

हाँ तुझसे मिलने एक बार और आऊंगी, 
अपनी कहानी तुझे फिर सुनाऊंगी,
तू लोरियां गा देना, मैं पलके बंद करके सुकून से सो जाऊंगी।
वह प्यार भरी नींद जो टूटी तो दर्पण के टुकड़ों को मैंने बिखरा पाया, 
तुझे वापस पाने की चाहत में जो समेटा तो खुद को घायल सा पाया, 
हाँ देख मैंने मेरी सपनों का दर्पण आज फिर टूटा सा पाया।