छुट्टी के दिन हर्गिज़ न करें ये काम
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छुट्टी के दिन हर्गिज़ न करें ये काम

आमतौर पर छुट्टी वाले दिन हम ये भूल जाते हैं कि अगला दिन फिर से वर्किंग, यानी ऑफिस के नाम होगा

छुट्टी के दिन हर्गिज़ न करें ये काम

एक बात बताइए, क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि संडे, यानी इतवार या फिर कोई छुट्टी का दिन बिताने के बावजूद अगले दिन ऑफिस जाने का दिल ही नहीं करता, सुस्ती सवार हो जाती है, बेहद थकान महसूस होती है, कामकाजी हफ़्ते की शुरुआत के साथ ही फिर से छुट्टी का इंतज़ार रहता है। अगर हां तो यकीन कीजिए कि आप आलसी बिल्कुल नहीं हैं, बल्कि आपने भी वही ग़लतियां की हैं, जो अक्सर ज़्यादातर लोग करते हैं। 
छुट्टी के बाद भी काम में पूरी दिलचस्पी न लेना दरअसल आलस या कामचोरी की निशानी नहीं है, बल्कि यह सीधा-सीधा इस बात का संकेत है कि छुट्टी होने के बावजूद आपने अपने दिलो-दिमाग़ को पूरा आराम नहीं दिया है, जिससे आपके काम करने की क्षमता, आपकी ऊर्जा का स्तर और जुझारूपन प्रभावित होते हैं। ऐसा नहीं है कि हम ये सब जान-बूझकर करते हैं, बल्कि पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करने के चक्कर में ऐसा स्वाभाविक रूप से हो जाता है। इतना ही नहीं, कई बार ये समस्या भी होती है कि कामकाजी जीवन को इतना ज़्यादा समय देना पड़ता है कि निजी जीवन की कई ज़रूरी चीज़ें या काम बाकी रह जाते हैं या फिर टलते चले जाते हैं। 
देखा जाए तो ज़रूरी तो दोनों ही हैं, लेकिन समझदारी इसी में है कि कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि एक जगह की थकान दूसरी जगह की कार्यक्षमता को प्रभावित न करे। कम से कम ऑफिस या व्यावसायिक जीवन में तो इसका दुष्प्रभाव हर्गिज़ देखने को न मिले। तो चलिए, करते हैं एक छोटी सी कोशिश इस समाधान को तलाश करने की। 

आराम के नाम पर ज़्यादा सोना

 

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जब भी छुट्टी का दिन आता है तो अक्सर कई लोग पूरे हफ़्ते की थकान उतारने के नाम पर पूरा दिन एक तरह से सोने में ही गुज़ार देते हैं। वे या तो उठते ही काफ़ी ज़्यादा देर से हैं या फिर दिन भर किस्तों में सोते हैं। ऐसा करने से उन्हें लगता है कि वे पूरे हफ़्ते की थकान उतारकर अगले हफ़्ते के लिए तरो-ताज़ा हो जाएंगे, जबकि मनोवैज्ञानिकों की मानें तो ये आधा सच है। सोने से थकान ज़रूर उतरती है, लेकिन ज़्यादा सोना उल्टे थकान का कारण बन जाता है। सोने से शरीर को आराम मिलता है और हम तरोताज़ा हो जाते हैं, लेकिन बहुत ज़्यादा सोने से हमारे शरीर का रेग्युलर क्लॉक प्रभावित होता है और अगले कामकाजी दिन के लिए हमें अपने अवचेतन मन को नए सिरे से तैयार करना पड़ता है। 
इस समस्या से बचने के लिए आप ऐसा कर सकते हैं कि छुट्टी के दिन की तैयारी का कोई बोझ पहले से अपने दिमाग पर न लें। अलार्म से भी एक दिन की छुट्टी ली जा सकती है, लेकिन अगर नियमित अभ्यास के अनुसार आपकी आंख बिना अलार्म के भी अपने आप खुल जाती है तो फिर दोबारा ज़बरदस्ती सोने की कोशिश न करें। बस रिलैक्स रहिए। अपनी पसंद का संगीत सुनते हुए आराम से अपने नियमित कार्य निपटाएं। अपने शौक को भी समय दें। खाने-पीने के समय को भी नियमित रहने दें। यह सेहत के अनुशासन के लिहाज़ से भी अच्छा रहेगा। सबसे अच्छा तो यह होगा कि आप अपने शरीर को ही तय करने दें कि वह कब आराम करना चाहता है और कब काम, यानी दूसरी चीज़ें। 

पूरे घर की साफ़-सफ़ाई शुरू कर देना

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अगर हम ज़्यादातर लोगों का साप्ताहिक रुटीन देखें तो एक बात हमें कॉमन नज़र आएगी। छुट्टी के दिन को ज़्यादातर लोग साफ़-सफ़ाई के नाम कर देते हैं। सारे घर में एक तरह की अफ़रा-तफ़री मचाकर साप्ताहिक सफ़ाई का आयोजन किया जाता है। पूरे घर के कोने-कोने को चमकाना हो या हफ़्ते भर के कपड़े धोना, ऐसा लगता है कि कोई तूफ़ान ही आ गया हो। ये लोग एक-एक सामान साफ़ करने के नाम पर अच्छा-ख़ासा वर्कआउट कर डालते हैं। साफ़-सफ़ाई अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं है कि आप अपनी पूरी छुट्टी इसी सफ़ाई के ही नाम कर दें। साफ़-सफ़ाई डेली लाइफ का हिस्सा होना चाहिए और ये भी ठीक है कि कई बार कामकाजी दिनों में इतना समय नहीं होता है कि सफ़ाई ज़्यादा अच्छे से की जा सके। तब भी छुट्टी के दिन को इस काम के लिए चुनना कोई समझदारी भरा विकल्प तो हर्गिज़ नहीं है। उस पर अगर छुट्टी सिर्फ़ एक दिन की ही है, तब तो आप समझ लीजिए कि शाम तक आप इस हालत में नहीं रह जाएंगे कि अगले दिन का स्वागत अपनी पूरी ऊर्जा के साथ कर सकें। 
कामकाजी महिलाएं तो ऐसा अक्सर करती ही हैं, कई घरेलू महिलाएं भी अक्सर ऐसी ग़लती कर बैठती हैं। उन्हें लगता है कि छुट्टी वाले दिन सभी लोग मिलकर काम आसानी से और जल्दी कर लेंगे तो उन्हें आराम मिलेगा। जहां तक बात है कामकाजी महिलाओं की तो वे समझ सकती हैं कि अपनी इसी आदत के चलते वे हमेशा थकी-थकी ही रहती हैं। हमारा सुझाव तो यही है कि रुटीन सफ़ाई तक तो ठीक है, लेकिन छुट्टी के एक दिन में घर के इस काम में अपने को इतना न थकाएं कि फिर अगला हफ़्ता शुरू होते ही आपको वही सारे लक्षण अपने में नज़र आने लगें, जो हमने शुरू में बताए थे। फिर भी अगर ऐसा करना ही पड़े तो इसमें पूरे परिवार की मदद लेने से न हिचकें और अपने आराम का भी पूरा-पूरा ध्यान रखें। 

घर में ही ऑफिस खोल लेना

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वर्क फ्रॉम होम कल्चर ने जहां एक तरफ़ हमें ये सुविधा दी है कि हम कोरोना जैसी किसी महामारी के दौर में भी अपने काम को प्रभावित होने से बचाए रखें, वहीं दूसरी तरफ़ इससे हमारा व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया है। कई बार तो वाकई काम का प्रेशर इतना होता है कि पूरे हफ्ते काम करने के बाद भी बचा रहता है और छुट्टी के दिन काम करना मजबूरी हो जाता है। इसके उलट कुछ लोगों की ऐसी आदत भी होती है कि वे काम को इतना समर्पित होते हैं कि उसके चक्कर में वे अक्सर अपने आराम या निजी वक्त को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं और हमेशा छुट्टी वाले दिन भी घर पर एक तरह से ऑफिस ही खोलकर बैठ जाते हैं। 
इसके समाधान के तौर पर यह किया जा सकता है कि सबसे पहली कोशिश और आदत तो यही बनाए रखिए कि ऑफिस का काम ऑफिस में ही पूरा करें, जिससे कि काम घर पर करने की नौबत ही न आए। अगर इसके बावजूद ऐसा करना ही पड़े, तब भी इसे अपनी नियमित आदत न बनाएं।
अगर आपका रुटीन ऐसा है कि आपको वीकएंड पर भी काम करना ही पड़ता है तो संडे न सही, लेकिन अपने लिए एक दिन ज़रूर रखें, जब आप अपने दिलो-दिमाग को आराम दे सकें। इसके लिए आप अपने बॉस या ऑफिस टीम लीडर से बात कर सकते हैं। इससे आपको पूरे सप्ताह काम नहीं करना पड़ेगा और किसी एक दिन आपकी जगह किसी और की शिफ़्ट लग सकती है। इससे काम भी प्रभावित नहीं होगा और आपका आराम और सेहत भी बनी रहेगी। घर पर रहकर भी अगर आप अपने परिवार को निरंतर नज़रअंदाज़ करते हैं तो आगे चलकर यह भी एक बड़ी समस्या में बदल सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपनी शिफ्ट को ऑर्गेनाइज़ करें। 

ज़रूरत से ज़्यादा घूमना

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छुट्टी का दिन बेशक आप पूरी तरह से अपने नाम कर सकते हैं और हर वह काम कर सकते हैं, जो भी आपको पसंद है, चाहे घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करना ही क्यों न हो। छुट्टी का मकसद ही शारीरि-मानसिक थकान दूर करके अपने-आपको और अपनी ऊर्जा को नए सिरे से तरोताज़ा करना होता है। अगर आपको लगता है कि घूमने-फिरने से आप ऐसा महसूस कर सकते हैं तो यह भी एक अच्छा ख़्याल है। 
यहां दिक्कत बस तब होती है, जब आप एक दिन की पूरी छुट्टी सिर्फ़ घूमने-फिरने या फिर ढेर सारी शॉपिंग के नाम कर देते हैं। इससे होता ये है कि ऑफिस के काम से तो निजात मिल जाती है, मगर आपकी शारीरिक थकान दूर नहीं हो पाती है। उल्टा कई बार तो आप इतना थक जाते हैं कि अगले दिन काम पर जाने की बजाय देर तक सोते ही रह जाते हैं या फिर बॉडी पेन की वजह से ऑफिस जाने का ही जी नहीं चाहता। 
ऐसे में सही तरीका तो यही है कि अगर आप कहीं घूमने-फिरने का प्लान कर भी रहे हैं तो उसे इस तरह से रखें कि उसकी थकान आप पर हावी न हो जाए, बल्कि नई जगह देखने की खुशी और ताज़गी आपमें नई ऊर्जा का संचार कर दे। ठीक यही बात शॉपिंग पर भी लागू होती है कि अगर आप मार्केट जा भी रहे हैं तो बजाय इसके कि पूरी मार्केट का चक्कर लगाने में लग जाएं, अपनी उन ज़रूरी चीज़ों या कामों की एक लिस्ट बना लीजिए, जिसके कारण आपने छुट्टी के दिन मार्केट जाने का विचार बनाया। अपने पूरे रुटीन में आराम को सबसे ऊपर रखें।

देर रात तक पार्टी

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अब तो मौसम ही ऐसा शुरू होने वाला है कि शादी-ब्याह, उत्सव, पार्टी वग़ैरह का सिलसिला एक के बाद एक चलता ही रहेगा। बहुत से लोग तो छुट्टी के दिन पर कोई पार्टी यही सोचकर प्लान कर लेते हैं कि छुट्टी के चलते ज़्यादा से ज़्यादा लोग आ सकेंगे। हो सकता है कि आप भी ऐसा करते हों या ऐसी किसी पार्टी में शामिल होते हों। ये सारी गतिविधियां सामाजिकता के हिसाब से बेहद ज़रूरी भी हैं, लेकिन इन सबसे ऊपर है आपका आराम। पार्टी में सबके साथ मज़ा तो बहुत आना स्वाभाविक ही है और ऐसे में ज़ाहिर है कि आपको समय का पता ही न चले, मगर समय का पता चलना है बहुत ज़रूरी, ताकि आपके वर्किंग डेज़ की शुरुआत ही सुस्ती और थकान से न हो। 
इसके लिए आप यह कर सकते हैं कि पार्टी में समय से पहुंचें और समय से ही विदा भी ले लीजिए, ताकि आप अपनी नींद पूरी कर सकें, वर्ना कई बार ये देर रात तक की गई पार्टियां अगले दिन के ऑफिस पर बहुत भारी पड़ जाती हैं। अगर हफ्ते की शुरुआत में ही आपकी नींद की कमी से दिन बोझिल तरीके से शुरू होगा तो बाकी के पूरे हफ्ते की थकान का हाल क्या होगा, ये बताने की ज़रूरत नहीं है।
तो ये थी कुछ ऐसी बातें आपसे साझा करने की कोशिश, जिससे आप अपने वीकली ऑफ, यानी साप्ताहिक छुट्टी के दिन को बोझिल या थकाऊ बनने से बचा सकते हैं