करवाचौथ स्पेशल- समय के साथ बदलते संबंध की शक्ति
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करवाचौथ स्पेशल- समय के साथ बदलते संबंध की शक्ति

इस करवाचौथ पर जानिए रिश्तों के बदलते स्वरूप के बारे में और संवारिए अपने रिश्ते भी अपनों के साथ।

करवाचौथ स्पेशल-  समय के साथ बदलते संबंध की शक्ति

करवाचौथ एक पारंपरिक भारतीय उत्सव है। बरसोबरस से इसे रिश्तों की एक मज़बूती के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यूं तो यह त्यौहार मुख्य रूप से पति और पत्नी के आपसी प्रेम को दर्शाता है, लेकिन भारत में तो हमेशा से यही माना जाता रहा है कि विवाह केवल दो व्यक्तियों को ही नहीं, बल्कि दो परिवारों को जोड़ता है। लिहाज़ा, सारे तीज-त्योहार भी किसी न किसी रूप में जाकर पूरे परिवार को एक साथ लाकर खड़ा कर देते हैं। अब करवाचौथ को ही ले लीजिए, बदलते समय ने इसमें भी रिश्तों के स्वरूप को प्रभावित किया है, लेकिन कुछ नए और दिलचस्प अंदाज़ में।

पति-पत्नी के रिश्ते में बढ़ी साझेदारी


करवाचौथ पर पहले क्या होता था कि सिर्फ़ पत्नियां ही पति के लिए व्रत रखती थीं। पूरे दिन भूखी-प्यासी रहकर वे अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थनाएं करती थीं। उनके लिए सजती थीं, संवरती थीं। अब समय ने इस रिश्ते के स्वरूप को बदला है। पहली बात, अब पतियों को भी पत्नी के साथ करवाचौथ का व्रत रखते देखने पर हैरानी नहीं होती, बल्कि एक सुखद सा भाव मन में भर जाता है। ज़ाहिर है, अगर एक पत्नी के लिए उसके पति का महत्व इतना है कि वह उसके लिए यह व्रत करती है तो पति के लिए भी तो उसकी जीवनसाथी इतनी मायने रखती है कि उसके प्यार और सम्मान के मान स्वरूप वह भी उसके साथ व्रत रखकर दिन-भर भूखा-प्यासा रहता है और इस भूख-प्यास में यह एहसास भी छिपा होता है कि जिस तरह से पत्नी अपने पति के लिए कोई भी तकलीफ़ खुशी-खुशी सहन कर सकती है, उसी तरह पति भी अपनी पत्नी के सुख-सम्मान के लिए पीछे नहीं रहने वाला। 

प्यार के साथ-साथ काम में भी साझेदारी


आजकल तो ज़्यादातर कपल्स वर्किंग ही मिलते हैं। ऐसे में यह पुराना दृश्य भी बदला है कि करवाचौथ के व्रत के दिन पत्नी तो  भूखी-प्यासी किचेन में शाम की पूजा के लिए पकवान बनाने में जुटी हुई है और पति अपने पर इतराए हुए बस इधर-उधर घूम रहे हैं। अब पति भी पत्नी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम कराते हुए नज़र आते हैं। चाहे वह पूजा की थाली तैयार करना हो या किचेन में शाम की पूजा के लिए ख़ास व्यंजन बनाना। वे हर काम में ख़ुशी-ख़ुशी हाथ बंटाते हैं, बल्कि अब तो करवाचौथ को व्रत खोलने के बाद रेस्टोरेंट्स में उमड़ती भीड़ बताती है कि इस व्रत का पारंपरिक स्वरूप कितना आधुनिक होता जा रहा है। वैसे अगर यह बदलाव रिश्तों में परस्पर समझदारी पैदा करता है और दिलों को क़रीब लाने का काम करता है तो बुरा नहीं है। आख़िरकार तीज-त्यौहार और होते क्या हैं, रिश्तों के क़रीब आने का नाम ही तो हैं ये। 

सखी बनती सास का संयोग है सुंदर


समय ने जहां और रिश्तों पर प्रभाव डाला है, वहीं सास-बहू के रिश्तों पर भी इसका असर साफ़-साफ़ महसूस किया जा सकता है। अब सास हुकुम चलाने वाली एकमात्र सत्ता का नाम नहीं है, बल्कि सास और बहू की दोस्ती भी अपने-आप में ख़ूब मज़ेदार रूप में नज़र आती है। पहले करवाचौथ पर सिर्फ़ सास ही बहू को सरगी देती थी। अब बहू भी इस मौके पर अपनी सास को उपहार देना नहीं भूलती। कई जगहों पर तो यह साझेदारी बड़े ही सुंदर रूप में सामने आती है, जिसके चलते ससुराल में बहू अब नए रूप और नए अवतरण में नज़र आती है। वह बहू कम, बेटी और दोस्त सी ज़्यादा लगने लगी है। सास को बहू के रूप में अपनी सत्ता का दावेदार नहीं, बल्कि एक दोस्त के रूप में भावनाओं का साझीदार मिलने लगा है। यही बात परिवार के दूसरे रिश्तों में भी मिलने लगी है।
बात भी तो बस ज़रा से प्यार, सम्मान और साझेदारी की है। तो क्यों न आप भी इस करवाचौथ अपने रिश्तों को दीजिए एक नया आयाम। करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाएं!